Book Title: Murtimandan
Author(s): Labdhivijay
Publisher: General Book Depo

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) मन्त्री-अच्छा जाइए परन्तु शीघ्र पधारिये, देर किसी प्रकार न हो। इंढिया-श्रीमान् जी ! मैं पूछ करके आगया हूं ॥ मन्त्री-कहिए क्या ? दंदिया-गुरुजी ने कहा है कि अर्हन्त भगवन्त के द्वादश गुण, और सिद्ध महाराज के आठ, और आचार्यजी के छत्तीस, और उपाध्याय जी के पच्चीस, और माधु महाराज जी के सत्ताईस, इन सब का योग करने से १०८ गुण होते हैं, इसलिए मणके भी १०८ रक्खे गए हैं। मन्त्री-आप कुछ समझे ? इंढिया-नहीं श्रीमान् जी मैं कुछ नहीं समझा हूं ॥ मन्त्री-आप तनक ध्यान से सुनिए, मैं आपको समझाता है। पांच * परमेष्ठी के गुण एकसौ आठ होने से माला के मणके भी १०८ बनाकर उन में उन महात्माओं के गुणों की स्थापना ( मूर्ति ) क्यों नहीं मानी जाएगी ? जरूर ही माननी पड़ेगी। दंदिया-यह बात तो ठीक है, भला कोई और भी युक्ति है ? मन्त्री-लो ध्यान दीजिए, आप यह कहें आप लोगों के गुरु और गुरुणी के चित्र होते हैं ? वा नहीं ? * जैनियों के मूलमन्त्र का नाम है, जो नवकार मन्त्र के नाम से प्रसिद्ध है। For Private And Personal Use Only

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