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शोभा : तुम्हारे दुःख से मेरा दुःख अलग नहीं है, पर कहे बिन्हा रहा नहीं जाता। क्या यह भूल गयी हो जंजना कि तुम परित्यक्ता हो पदच्युता हो? किसके गर्व पर तुम्हारे ये स्वच्छन्द कीड़ा और बिहार ? जो चाहो करो, पर कुल की मर्यादा नहीं लोपी जा सकेगी...! "
दुखित कण्ठ से, परन्तु अकुण्ठित तीव्रता और आवेश में राजमाता ने सब कह डाला, और चुप हो गयीं। अंजना अचल बैठी थी, पर भीतर उसके भूचाल था । उत्तर देने की चेतना उसमें नहीं थी ।
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जब अंजना को चेत आया तो पाया कि राजमाता, वसन्त, जयमाला और बाहर बैठी हुई प्रतिहारियाँ सब जा चुके हैं। वह अपने कक्ष में अकेली है । वसन्त इन दिनों प्रायः उसके पास होती है पर आज वह भी नहीं है। अपने तल्प पर जाकर वह औंधी लेट गयी। नहीं है वसन्त तो उसे शिकायत क्यों हो। उसके पति फिर आ गये हैं, उसके अपने बच्चे हैं, वह अपने घर गयी होगी और उसने कब किसी की अपेक्षा की है? जिस दिन ही रहोपवन की सीमा लाँघकर जम्बू-वन में गयी थी, उसी दिन वहाँ से लौटते हुए उसने पाया था कि वसन्त अब उसके साथ नहीं है। अंजना की मुक्तता उसे सह्य नहीं है। वह चिर दिन की सखी, जीजी भी बिछुड़ती ही गयी और उसे ठीक-ठीक याद नहीं कि वह कब पीछे छूट गयी। फिर बीच-बीच में वसन्त महेन्द्रपुर भी चली जाती। उसकी ससुराल वहीं घी - और पीहर भी वहीं था। पर अंजना ...? वह भी तो महेन्द्रपुर जा सकती थी पर वह नहीं गयी। पिता और भाई, एक-एक कर सभी उसे कई बार लिवाने आये - यहाँ तक कि माँ भी आर्यों, उसके पैर तक पकड़ लिये, रो-रोकर हार गयीं । पर अंजना अपने को लौटा न सकी। उसे स्वयं इसके लिए मन में कम सन्ताप और ग्लानि नहीं थी । पर... पर अब उसका पथ बदल चुकी था, उस पर यह बहुत दूर निकल गयी थी वहाँ से लौटना उसका सम्भव नहीं था। यह उसकी विवशता थी और फिर कौन-सा मुँह लेकर यह महेन्द्रपुर जाती? अपनी जन्मभूमि को बार-बार उसने सजल आँखों से प्रणाम किया है और तब अपने भाग्य को कोस-कोस डाला है। अपने कौमार्य की वह स्वप्न भूमि अब उसके लिए दूर से ही वन्दनीय थी । पर तब सामने कितने ही नवीन लोकों के अन्तराल जो खुलते जा रहे थे।
वेदना का कुहासा एक दिन अनायास फट गया था और वह नवीन सवेरे के प्रकाश में बढ़ती ही चली गयी। तब उसे यह ध्यान नहीं रहा कि कौन पीछे छूट गया है। उसने पाया कि उसकी यात्रा निःसंग है। उस पथ का संगी कोई नहीं होता । प्रतिहारियों, दातियों और सखियों को सहज ही उसने यह जता दिया था कि बिना काम और बिना कारण उसके साथ किसी को रहने की बाध्यता नहीं हैं। और सामायिक में सेविकाओं और संगिनियों का क्या होता? और उसके के भ्रमण ? उसमें
मुक्तिदूत : 81