Book Title: Muktidoot
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 225
________________ ही देर में मांगलिक घाटा-रय और शंखध्वनि के साथ दोनों यान उड़ नन । हनुमहदीप को आग जब चान अपनी अन्तिम ऊंचाई पर जाकर था गान स न लगा. नव प्रानतः प्रहस्त को गांद गं सिर रखकर नखासीन घंटे पवनंजय के पास सरक आये। ...उनक गले में बड़े ईनंद से उपनों हाथ डाल दिय और गद्गद कार में बान - ___ "वधाई ला बेटा, कामकमार और नइभत्र मोक्षगापो पुग्न कं तम पिना हो! उसकं जन्म के बहुत दिनों पहले ही वनवास काल में मान न दशन देकर अंजना का पह मावतव्य का किया था। गौर लोक जिस दिन अगाय की गफ़ा , अंजना कं पा जन्मा और में उसे लेकर हनुाहनीप आया, उसी दिन तुम्हारी लोक विश्रुत धम-नि-जय का संवाद सुना... | उस घड़ी का अंजना की भानन्द वेदना इन्हीं गारखा देता है, पर शब्दों में कह नहीं सकूँगा... " वृद्ध चुप ही गय और पवनंजय के मुख की ओर भागेक, देखते रह गये । मनने-खनने कुमार की आंखें मुंद गयी थीं और पश्म आसुओं में पकित थे। मीना एक गम्भीर परिपूर्णता के उत्तर में विश्व के सारे मामाद और विपाद की धारा एक होकर बह चली हैं।...सुख में, दल में, संयोग और वियोग में बहो पाक अनाहित आनन्द की बांसरी बन रही है....।। जय संक्षिप्त में प्रतिसूर्य न अंजना के वनवास और उमकं दीर्ग कष्टों की कथा भी हंसते-हँसते मनायीं। उसके बाद पार्वत्यवन पर अपने विमान अटयाने का यांगायंग, आर नीचे जाका अंजना के अनायास मिलन और पन-जन्म का न का। उन्होंने यह भी सुनाया कि कैसे अंजना के इस नवजात शिशु की कान्ति से गुफ़ प्रकाशित हो गयी थी। वह भी बताया कि कैसे नाकाशमार्ग मेंचान से चालक अंजना के हाथ से छूटकर, पर्वत-शिन्ना पर जा गिरा और शिला रखगट-खगई हा गयी---पर बालक को कोई आंच नहीं आयी, वह वैसा ही मुसकगता हुआ खेलता गा।-उस क्षण उस बालक के वन-वृषभ-नागच-सहनन का अनायार प्रमाण मिला और तभी वसन्तमाना न मनि की 'मविप्यनाणी का प्रसंग का नाया...! ...सनकर पचनंजय को लगा कि पानी अपने आगामी जन्म क किमी अपूर्व विश्व में पहुंच गये है, जहा का परिचय सःधा नया है। विगत सब काछ मानी विस्मरण हो गया है। कार दर प्रतिमय फिर चाह रह | .. तब पवनंजय ने उन्मल होकर फिर जिज्ञासा की प्टिस उनकी आर देखा, तो प्रतिसब ने फिर अपन वृतान्त का सूत्र पकड़ा। संक्षेप में, पवनंजन की खोज में लापन भ्रमण का वृत्तमा न्हान कर मनाचा । बोनं कि जब से पवनंजय की विजय का मंबाद उन्होंने मना था, नभी में व इस प्रतीक्षा में थे, कि कमार के घर लोटन की खबर पान हो, तरत व जजमा का काल-सन्दश लेकर आदित्यपर जाग। पर दर्दव की नाट्यगीला का अन्तिम पकिमान : ५

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