Book Title: Muktidoot
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 227
________________ दक्षिण की खिड़की से तिरछी होकर साँझ की केशरिया धूप कमरे के सीप-जटित फर्श पर रहा थी। चारों ओर समुद्र का तट देश उत्सव के कोमल और मधुर-मन्द वाद्यों से मुखरित हो उठा था । 7 प्रतिहारी कक्ष के द्वार तक पवनंजय को पहुँचाकर चली गयी। कुमार ने एकाएक परदा हटाकर कमरे में प्रवेश किया। कुछ दूर बढ़ आये । गति अनायास है-और मन निर्विकल्प सामने दृष्टि उठी अंजना के वक्ष पर उन्होंने देखा - वह शिशु कामदेव ! पुत्र के शरीर से सहज स्फुरित क्रान्ति में, दीपित था प्रिया का वही सरल, सस्मित मुख मण्डल । I - स्तब्ध चित्र- लिखित से पवनंजय शिशु को देखते रह गये उनकी सारी कामनाओं का मोक्ष-फल ? -उनके चिर दिन के सपनों का सत्य ? एक अलौकिक आनन्द की मुसकराहट से कुमार ने सामने खड़ी प्रिया का अभिषेक किया। उसके प्रति नीरव-नीरव उनकी आत्मा में गूँज उठा " ओ मेरी मुक्ति के द्वार, मेरे वन्दन स्वीकार करो। मैं तो केवल कल्पनाओं से ही खेलता रहा। पर तुमने मेरी कामनाओं को अपनी आत्म-वेदना में पलाकर वह सर्वजयी पुरुषार्थ डाला है, जो उस मुक्ति का वरण करेगा, जिसका मैं सपना भर देख सका हूँ। - " पवनंजय आँखें नीची किये खड़े थे, जय और पराजय की सन्धि रेखा पर । "इसे स्वीकार न करोगे...." प्रिया का वही वत्सल, करुण कण्ठ- स्वर है। पवनंजय आंखें न उठा सके। पुरुपत्वं के चरम अपराध के प्रतीक से वे सिर झुकाये खड़े थे। फिर दूसरी भूल उनसे हो गयी हैं। बार-बार वे प्रमत्त हो उठते हैं। उन्हें अपने ऊपर विश्वास नहीं रहा है पर अनजाने ही कुमार ने हाथ फैला दिये थे। उन फैले हाथों पर धीमे से अंजना ने शिशु को रख दिया। I अगले ही क्षण कुमार अनिर्वचनीय सुख से पुलकित ओर चंचल हो उठे । अपनी छाती के पास लगे शिशु को देखा : आँख के आँसू थम न सके । - यह सौन्दर्य - यह तेज ! - अनिवार है यह मानो छाती में सरसराता हुआ, अस्पर्श रूप से पार हो जाएगा। हाँ, यही है वह, यही है वह, जिसकी खोज उनके प्राण की अनादि जिज्ञासा थी...! सुख इतना अपार हो उठा कि उसे अपना कहकर ही सन्तोष नहीं है! हवा और पानी सा सहज चंचल और गतिमय शिशु बाँहों पर ठहर नहीं पा रहा है। अनायास झुककर पचनंजय ने उसका लिलार चूम लिया। मुँदी आँखों की बरौनियों से धीरे-धीरे उसके मुख को सहलाने लगे। - मन-ही-मन कहा "...जाओ मेरे दुर्धर्ष ममत्व - मेरे मान ! उस वक्ष पर उसी गोद में - जिसने - मुक्तिदूत : 237 ።

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