Book Title: Muktidoot
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 224
________________ है। सबसतमा गृह-न्याग का वृत्त सना है, अंजना ने अन्न-जल त्याग दिया हैं। संनाहीन आर विकल होकर दिन-रान वह तम्मा नाप की पर लगाये है। नरन चला गंगा एफ क्षण भी देर हो गयी नी वा जन्म-दखियागे तम्हारा मुंह देखे बिना ही पाण त्याग दगी.. ।" पचनंजय ने सना, भार भनका भी माना विश्वास न कर सके। चौकन्ने आर भिभूल से ले जई रह गये । अंग-संग उनका कांप रहा है-दृर स आती हुई यह कगा जनि मनाई पड़ रही है। हो, खल रह गये हैं. और पागल की नाई जाड़त नन्नियों म व सूर्य का और नाक रहे हैं । वृद्ध प्रतिसूर्य के चेहरे पर दास-धाग आँस बह रहे हैं। एकाएक 'पवनंजय चिल्ला ॐ.. "भजना...? अंजना...? अजना मिल गयी...सबम्ब वह जीवित है इस लोक मे... ना मश पापी के लिए रो रही है....प्राण दे रही है-आह..." विपन हो पवनंजय, प्रांतसूर्य के गले लिपट, फूट-फूटकर रोने लगे। "गा नहीं बेटा, दीर्घ कष्ट और दुख की रात चोत गयी है। आज हो सुख का मंगल-प्रभात साया है तुम्हारे जीवन में। चलो, अब एक षण की भी दर उचित नहीं है। उनकर अपनी बिछुट्टी प्रिया और अपने अनाथ पुत्र को सनाथ करो...।" घोड़ी ही देर में पतनंजय का स्वस्थ हो चल। सब आत्मीयजन मिलकर उन्हें पास के एक मर्गयर पर ले गये। प्रहस्त ने अपने हाथों कमार को स्नान कराया, हक आर सुगन्धित नवीन वस्त्राभरण धारण कगये । चलने को जब प्रस्तुत हाप, ती फिर एक बार कछ दूर पर लज्जित और नमित खड़, पिता और श्वसर की और पवनंजय की दृष्टि पड़ी। कुमार को अनुमब हुआ कि अपनी ही आत्म-लांछना और आत्म-निरस्कार से वे मर मिटे हैं। तभी दोनों गजपरुषों ने आकर पवनंजय के पैर एकड़े लिये। एक पत्थर-से वे आ पड़े हैं -शदातीत है उनका आत्म-परिताप। केवल उनके हइयों की धड़कन ही जैसे ममार का सुनाई पड़ी। पवनंजय धप-से नीचे बैठ गये, धीर-ले पैर ममेट दर सरक गये आर व्यथित काट को बोले "पितृजनो. समझ रहा है तम्हारी बैदना। पर, क्या भूल नहीं सकोगे, उस बीती वात को...? मैंने तुम्हें बहुत कष्ट दिये हैं, मैं तो सबकं कष्ट का कारण ही रहा हूं। पर मैं तम्हाग़ पुत्र है बहुत ही दीन, अवन और अकिंचिन्कर हो गया हूँ... | क्या तुम भी पत्र रूप में मझे लौटा नहीं सकोग..." ___ दोनों गजाओं ने हियं भरकर कपार का आलिंगन किया और उनका लिलार तुम लिया। शान ही यान प्रस्तुत किय गये। एक विमान में गना प्रतिसूर्य, प्रहस्त और पवनंजय वै । दूसरे में गजा प्रहाद, राजा महेन्द्र और अन्य अनुचा नांग बैठे। घोड़ी ५५ : मस्तिन

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