Book Title: Muktidoot
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 176
________________ हूँ तुम्हारे साथ चलकर कहीं तुम्हें भी विपद में न डाल दूँ :- क्योंकि विपदाओं में चलने के लिए ही अंजना ने इस लोक में जन्म लिया है... आगे की बात तुम्हीं जानी, मामा...." कहते-कहते अंजना फिर भर आयी और छलछलावी आँखों से पास सोये शिशु को ताकती रह गयी । .... अंजना, बसन्त और शिशु को साथ लेकर प्रतिसूर्य का विमान तीर के वेग से खाई को पार कर रहा था। हवा में मोतियों की झालरें उलझ रही थीं, और मणियों की घण्टिकाएँ बज रही थीं। ज्यों-ज्यों विमान का वेग बढ़ता जा रहा था, अंजना से अपनी गोद का शिशु सँभाले न सँभल रहा था।... कि पलक मारते में हाथ से उछलकर बालक खाई में जा गिरा। नीचे गिरते बालक की ओर देख अंजना के मुँह से चीत्कार निकल पड़ी - “आह... तू... भी... छोड़... चला...मुझे...” कहकर अंजना मूर्च्छित होकर धमाकू से पायदान में गिर पड़ी। विमान विलाप और रुदन की पुकारों से गूंज उठा। बालक के गिरने के ठीक स्थल पर दृष्टि लगाये, द्रुतवेग से प्रतिसूर्य विमान को तल में लाये। ठीक वहीं आकर विमान उतरा जहाँ बालक गिरा था। पर्वत की एक वज्र-सी चट्टान पर बालक फूल-सा मुसकराता हुआ क्रीड़ा कर रहा था। नीचे ' उसके शिला के सौ-सौ टुकड़े हो गये थे! अपार सुख और आश्चर्य से पुलकित सभी देखते रह गये। चेत में लाये जाने पर अंजना ने जो उठकर बालक को देखा तो उसकी आँखें झुक गयीं, और मुख उसका अपूर्व लज्जा और रोमांच से लाल हो गया! प्रतिसूर्य ने बालक को गोद में उठाकर उस अमृत पुत्र का वह तेजस्वी लिलार चूम लिया और अनुभव किया कि उनका मानव जन्म कृतार्थ हो गया है। बालक को अंजना की गोद में देते बोलेहुए " इसे जन्म देकर तेरी कोख धन्य हुई है, अंजनी ! - निश्चय ही समचतुरस्र संस्थान और वज्र-वृषभ- नाराच संहनन का धारी है यह बालक। इसके बलवीर्य से पहाड़ खण्ड-खण्ड हो गया है, पर इसका घात नहीं हो सका । निश्चय ही यह कोई म- शरीरी और तदभव मोक्षगामी है !" चरम तब बसन्त ने प्रसंगवश मुनि की भविष्यवाणी कह सुनायी। सुनकर सबकी आँखों में हर्ष के आँसू आ गये। .... हनुरुद्वीप में ग्यारह दिन तक अंजना के पुत्र का जन्मोत्सव देवोपम समारोह से मनाया गया। चारों ओर के सागर - प्रान्त में मानो इन्द्रलोक की रचना ही उतर आयी थी। हनुरुरुद्वीप में जन्मोत्सव होने के उपलक्ष्य में बालक का नाम रखा गया - हनुमान् : 136 मुक्तिदूत :: -

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