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पचनंजय यान से उतरकर हँसते हुए बाहर आये। चारों ओर घिर आयी मेदिनी के हाथ जोड़कर बार-बार उनके प्रति माथा झुकाते हुए प्रणाम किया। निःशस्त्र और अरक्षित शरीर पर केवल एक-एक केशरिया उत्तरीय ओढ़े देव कुमारों से इन सुन्दर और तेजीमान् युवाओं को देख जनता स्तब्ध रह गयो । चारों और एक चन्नाटा-सा व्याप गया । पवनंजय ने सार्वजनिक रूप से मैनी और अभव की घोषणा की। कहा कि वे उसी मानव मेदिनी के एक अंश हैं, विदेशी होकर भी वे उन्हीं के एक अभिन्न बान्धव और आत्मीय हैं। उनकी सेवा में अपने को देकर कृतार्थ होने ने आये हैं और उनका सब कुछ उनके प्रेस के अधीन है। अन्त में उन्होंने अनुरोध किया कि तुरत उन्हें राजा वरुण के पास पहुँचाया जाए... । द्वीप के समुद्र
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राजा युद्ध में संलग्न थे। जब उनके पास संवाद पहुंचा कि अभी-अभी अचानक दो विदेशी युवा, थान से द्वीप में उतरे हैं, सुन्दर शान्त और निःशस्त्र हैं और उनकी सेवा किया चाहते हैं, तो सुनकर राजा बहुत अचरज में पड़ गये। अवश्य ही या तो कोई महान् सुयोग हैं, अथवा असाधारण दुर्योग! जो भी हो, शत्रु भी यदि अतिथि बनकर घर आया हैं, तो वह सम्मान और प्रेम का ही पात्र हैं। अपने मन्त्रणा कक्ष में जाकर राजा अतिथि की प्रतीक्षा करने लगे... 1
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कि इतने ही में कई मशालची सैनिकों से घिरे पचनंजय और प्रहस्त सामने आतं दीख पड़े। राजा को पहचानकर कुमार सहज विनय से नत हो गये। उन्हें देखकर ही वरुण एक अप्रत्याशित आत्मीय भाव से गद्गद हो गये। बिना किसी हिचक के मौन ही मौन राजा ने दोनों अतिथियों को गले लगा लिया। सैनिकों को जाने का इंगित कर दिया - |
परस्पर कुशल वार्तालाप हो जाने पर सहज ही पवनंजय ने मैत्री और धर्म-वात्सल्य का आश्वासन दिया। राजा ने भी पवनंजय के दोनों जुड़े हाथों पर अपना सिर रख दिया और उनके बन्धुत्व को ससम्मान अंगीकार किया। इसके बाद कुमार ने वरुण के वीरत्व का अभिनन्दन किया, अपना वास्तविक परिचय दिया और कहा कि जिस सत्य के लिए वरुण इल धर्म-युद्ध में अपने सर्वस्व की आहुति दे रहे हैं. आदित्यपुर का युवराज उसी धर्म युद्ध का एक छोटा-सा सैनिक बनकर अपने मानवत्व को सार्थक करने जाया है। क्या राजा वरुण उसकी सेवा स्वीकार करेंगे? वरुण के होट खुले रह गये, बोल नहीं फूट पाया। अननुभूत आनन्द के जाँसू उस वीर की आँखों के किनारे चूम रहे थे। कुमार को गाढ़ स्नेह के आलिंगन में भरकर राजा ने मूक मूक अपनी कृतज्ञता प्रकट कर दी।
पवनंजय ने तुरत प्रयोजन की बात पकड़ी। उन्होंने बताया कि द्वीप के पिछले आर में जल के भीतर से सेंध लग चुकी है। सवेरे तक द्वार टूट जाने का निश्चित अन्देशा है। उसी द्वार को तट-बेरी के गर्भ-कक्ष में पवनंजय उतर जाना चाहते
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