Book Title: Muktidoot
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 193
________________ क्या फापना हा नकती हैं। वरुण ना भी सत्य और आन्मयानन्य के लिए लड़ रहा है, पर वन भी इसी तह-शक्ति का संभाग लेकर सम्मख आयी इनरी नई-शक्ति का प्रतिकार का ना, जिनन गनगा को गवण बनाया है। यह प्रतिका' निष्फल होगा और टम चम्ण और भका वरुणदीप भिन्न हा मर जाए. पर शा का इच्छेद नहीं है। मकंगा- | यः सक हात हा भी चरण निहाप है, उसी की ओर म सत्य को पकार सनाई पड़ रही हैं। बिना एक भाग की दा किय पवनंजय का नहीं चल जाना है, नहीं ना सधर बहत दर हो जाएगी।-क ही रास्ता उसके लिए लगा है : जहाँ सम्गण पश-वन केन्द्रीमन होकर ट्रीप का पिहाना हार तोड़ने में लगा है. इसके मम्मुख जाकर हो जाना । साम और माद, किरक्ति को अवसर है कि उममें होकर अपना गरना बना नं । वक्ष में अकप जल रही उन ना के मिया और बाहर के किमा भी बल पर उसका विश्वास नहीं रहा है। उसके आंतरिक्त आग ते वह अपने को वहत ही निर्बल, अवश और निःशस्त्र अनुमत्र कर रहा है। उस अनिवार जाम-बंदना के सिवा उसके पास और कुछ नहीं है। .. गत आधी में अधिक चली गया है। पवनंजय ने बाहर आकर देखा, आक्रमण आँवधान्त चल रहा है। समुद्र की नहरों में प्रलयंकर का इमर 'भयंकर पाप कम्वा हआ वत रहा है। नारोलर बढ़ाती हई चाकारों आर हंकारों के बीच, विध्वंस का देवता. महस्रों वालाओं के भंग तोड़कर नागहब-नृत्य कर रहा है। ब्रह्माण्ड कंपा देनेवाले विस्फोटों और गामाता स दिगन्त बग़ हो गग । भीतर जाकर विनंजना ने प्रहरत का जगाया और संक्षेप में अपना मन्तव्य जनमें जला दिया। प्रहस्त सनका सन्नाटे में आ गये-- | बिना क ार वाले चे पवनंजय कं उस चहरे को नाकने रह गये। दीयं विचार और दग्दशिता का यह अवसर नहीं है. प्रहम्त नम आर में इस क्षण अन्यथा सोचने को स्वाधीन नहीं हैं। मम परे कोई शक्ति हैं तो हम महत में हमारे भीतर काम कर रही है, उनी की पुकार पर चल पड़ना है। टस इनकार कर सकना हमारे वर का नहीं है। रुकना इस क्षण मांत है, जीना है कि नाल पड़ना होगा। यह महान महान है, प्रसस्त, इसके द्वारा अपने को मंपिकर हम निश्चिन्त हा जागा, प्रभु स्वयं इनके रक्षक हैं।- तैयार होकर यान पर आगो, ज्ञग भो देर हो गयी ती अनयं घट जाएगा।... ...बहत ऊंचे पर ले जाकर पवनंजय ने बान की पाक मम गति घर छोन दिया। वरुणदीप के चागं और पाक नया चक्कर दंकर ऊपर से रण-नीला का विहंगावलोकन किया। तदनन्तर बहन ही सावधानी में कुमार ने बान को रूगढीप में ला उतारा। यान नीग्चगामी था। नीचे जन्नती दर्द राहयां मशाली और कोनाहानी के बीच टूटकर आयी हुई का की खा-नगा यान उतरा। कोलासन और भी भयंकर हो उठा। हिंना के मद में पागन मानवों की जनहागा 'मीद गं और मं आ स्टी। मकान .: ।।

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