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कोई कापना, कोई उत्कण्ठा। बस वे तो विस्मय और जिज्ञासा से भरी मुग्ध और विभोर ताकती रह गयी हैं।
...तभी एक तीन सुगन्ध से भरी वाप्प का कोहरा चारों ओर छा गया। अंजना और बसन्त के श्वास अवरुद्ध होने लगे, एक-दूसरे से चिपककर बिलबिलाती हुई वे आगे भाग चलीं। चलते-चलते कुछ ही दूर जाकर उन्होंने पाया कि आगे का बन-प्रदेश अभेध हो पड़ा है। जिस ओर भी वे जाती हैं वृक्ष के तनों से सिर उनके टकरा जाते है और कटोले झाड़-झंखाड़ों की अवरुद्धता में देह छिल-छिल जाती है। घोड़ी देर में सारे घन-प्रदेश की स्तब्धता एक सरसराहट से भर गयी। चारों ओर ले भूकम्पी पद-संचार के धमाके सुनाई पड़ने लगे। दोनों बहनों की आँखों में फिर एक बिजली-सी कौंध गयी। उसके प्रकाश में दौखा कि जहाँ तक दृष्टि जाती है, सूचीभेद्य शाखा और पल्लव-जालों का प्राचीर-सा खड़ा है। इस क्षण वह सारी अट्वी जैसे एक अवण्डर के वेग से हहरा उठी है। और इतने में आसपास से मुर्राते हुए और लोमहर्षी गर्जन करते हुए कुछ बड़े ही भीषण और पृथुलकाय हिंस्र पशु चारों ओर से झपट पड़े। उनके प्रचण्ड शरीरों की कशमकश में दबकर दोनों बहनें एक-दूसरे से चिपटकर चिल्ला उठीं। तभी तय करती ।की विकास या और उनकी डाढ़ें फैलकर उन्हें लीलने को आती-सी दीख पड़ीं। उनकी आँखें अंगारों-सी दहकती हुई अधिकाधिक प्रखर हो उठती हैं।
कि एकाएक दूर तक फैले इन पशुओं के विशाल झुण्ड के बीच अंजना को दीख पड़ा वही युवा रधी, जो कौतुक की हंसी हसता हुआ पास बुला रहा है। एक मधुर मार्मिक लज्ञा से पसीज कर अंजना निगड़ित हो रही है। जाने क्या लीला की तरंग उसे आयी कि बड़ी ही स्नेह-स्निग्ध और तरल वात्सल्य की आँखों से अंजना उन पशुओं को देख उठी। लीलने को आती हुई उन डादों के सम्मुख उसने बड़े ही विनीत आत्म-दान के भंग में अपने को अर्पित कर दिया, कि चाहो तो लील जाओ, तुम्हारो हो है...! क्षण मात्र में वे ज्चलित आँखें, ये डाढ़ें, वह गर्जन सभी कुछ अलोप हो गया । अंजना और बसन्त को अनुभव हुआ कि केवल बहुत-सी जिहाओं के ऊष्म और गोले चुम्बन उनके पैरों को दुलरा रहे हैं।
...सब कुछ शान्त हो गया है, फिर वे अपने मार्ग पर आगे बढ़ चली हैं। आस-पास कहीं वनस्पतियों के घने और जटिल जालों में दिव्य औषधियों का शीतल, मधुर प्रकाश झलझलाता-सा दीख जाता है। तो कहीं पैरों तले पृथ्वी कं निगूढ़ विवरों में स्वर्ण और चाँदी की रज बिछी दीखती है, और उन पर पड़े दोखते हैं वर्ण-वर्ण विचित्र रल, जिनमें सतरंगी प्रभा की तरंगें निरन्तर उठ-उठकर लीन हो रही हैं। अंजना और वसन्त को प्रतीत हुआ कि आत्मा में सोयी जन्म-जन्म की कामनाएँ अंगड़ाई भरकर जाग उठी हैं। और कुछ ही क्षणों में उन्होंने पाया कि अपनी विविध रूपियो इच्छाओं के सारे फल एकबारगो ही पाकर वे निहाल हो गयो हैं। क्षणैक
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