Book Title: Muktidoot
Author(s): Virendrakumar Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 162
________________ " ओ जीजी, यह क्या चमत्कार घटा है, जरा तुम्हीं बताओ न ! कहाँ गये हैं वे सारे घाव जिनसे काया कसक रही थी " बालिका - सी कौतूहल की चंचल दृष्टि से अंजना पूछ उदी I " सचमुच, अंजना, लगता है कभी कोई क्षत मानो लगा ही नहीं है। झरने के पानी में अनेक वनौषधियों और धातुओं का योग जो हो जाता है, उसी से न जाने कितने गुप्ण इस जल में आ गये हैं, सो क्या ठीक है।" गुफा पर अगर नकदली के पन्नों से दोनों ने अपने वक्ष देश बाँध लिये । वसन्त ने उँगलियों से सुलझाकर अंजना की उत्त अबन्ध्य केशराशि को फिर एक बड़े-से जूड़े में बाँधने का एक सफल विसफल यत्न किया। उसके दोनों कानों में एक-एक कुसुम की मंजरी उरस दी। फिर दोनों बहनें अपूर्व सुख का अनुभव करती हुई, फलाहार करने बैठ गयीं । 27 उस दिन बन के गहन में यो नया जीवन आरम्भ हो गया। अंजना वन-भ्रमण को चली जाती और वसन्त जीवन की आवश्यकताएँ जुटाने में रत रहती । आविष्कार की बुद्धि उसकी पैनी हो चली है। जीवन के एक सुधर शिल्पी की तरह उस गुहा में उसने धीरे-धीरे एक घर का निर्माण कर लिया। मोटी छालों के टुकड़ों को खोदकर दो-चार पात्र भी बना लिये गये हैं। नारियल की छालों से उसने अंजना के और अपने लिए पादुकाएँ बना ली हैं। कास की सीकों को आपस में बुन-बुनकर अंजना के लिए उसने एक मसृण और सुख-स्पर्श शय्या बना दी है। साँझ के झरे हुए फूल अथवा केसर, फूल- वनों से लाकर वह उसकी शय्या में डाल देती । धीरे-धीरे उसने कास के फूल, कमत-नालों के तन्तु और तरु-छालों के कोमल रेशों से बुनकर अंजना के लिए कुछ बसन भी बना दिये हैं। चैवरी गायों के चैंबर जंगल में से बीन लाकर उन्हें पानी से जमा-जपाकर कुछ ओढ़ने के आस्तरण बन गये हैं। पर ऋतु के आघात से बचने के ये साधन अंजना की बहुत कुछ रुचिकर नहीं हैं, इसी से वे एक और पड़े हैं। प्रसव के दिन ज्यों-ज्यों निकट आ रहे हैं, वसन्त के मन में उत्सव और मंगल के अनेक आयोजन चल रहे हैं। सवेरे के भोजन-पान से निवृत्त हो, वन के दूर-दूर प्रदेशों में वह खोज - बीन करती चली जाती है। वन्य-सरोवरों से कमलों का पराग और केशर पा जाती है तो कभी अंजना को उसी से स्नान कराती है। फूलों की रेणु से वह उसका अंग-प्रसाधन कर देती है। पहाड़ों में झरते सिन्दूर से उसकी माँग भर देती और लिलार में पत्र लेखा रच देती है । मृग-कानन से कस्तूरी और कदलीसे कर्पूर पा जाती है तो उससे अंजना के केश बसा लेती है। कानों में उसके -वन 172 मुक्तिदूत

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