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उठी है मन में यह शंका-कि अपनी ही राह पर स्वच्छन्द चल पड़ी हँ? कहाँ है उनसे अलग मेरा रास्ता? उन्हीं की खींची रेखा पर तो चली जा रही हूँ बहन! अपने ही ममत्व से घिर जाती हैं, इसी से रह-रहकर मन भ्रम में पड़ जाता है। तब उनके प्यार पर अनजाने ही अविश्वास कर बैठती हैं। क्षुद्रता और अज्ञान तो मेरा ही है न। इसी से तो पाकर भी उन्हें नहीं रख सकी।-पर मर भी जाऊंगी, तो जित राह यह मिट्टी पड़ेगी, इसी से होकर वे आएँगे, इसमें रंच भी सन्देह नहीं है...."
कहते-कहते अंजना का यह आँसुओं से धुला हुआ चेहरा एक अमन्द दीप्ति और जागति से भर उठा। वह बैठ गयी और अपने दोनों हाथों में वतन्त के दुखी चेहरे को दबाकर बोली--
“दुखी न होओ जीजी, मेरो छोटी-छोटी मूर्खताओं पर तुम्ही या घबरा जाओगी, तो कैसे बनेगा?"
"यह तो तेरी पल-पल की वेदना है, अंजन। इसे समझ सकें, ऐसी शक्ति मुझमें कहाँ है? पर स हत्यारी मे जो मन्तिक आघात किया है, उसी की पीड़ा से अभी तुझे पूछा आ गयी थी--यह बात मुझसे क्योंकर छिप सकेगी?" _ "यह तो ठीक-ठीक मैं भी नहीं समझ पा रही हूँ, जीजी।-क्या तुम उस विगत को भूल नहीं सकती...? संसार के पास आघात के अतिरिक्त और देने को है ही क्या? और उसके प्रति कृतज्ञ होने के सिवा हम और कर ही क्या सकते हैं। चोटें आती हैं कि हम चिन्मय है--गतिमय हैं! अमरत्व का परिचय उसी में छुपा है। नहीं तो जीवन की धारा ही जड़ित हो जाएगी।-मन से उस वृक्ष शंका और सन्ताप को दूर कर दो, जीजी।
"पर गर्भ का जीव तेरा वैरी तो नहीं है, अंजना। अपने ऊपर चाहे तुझे करुणा न हो, पर क्या उसके प्रति भी ऐसी निर्दय हो जाएगी?"
"उनके दान पर दया करने वाली मैं होती कौन हूँ, बहन और उसे इतना बलहीन मानने का भी मुझे क्या अधिकार है?-प्रहार पर चलकर यदि उसे आना भाया है, तो उसे अमरत्व ही क्यों न मानें-मृतत्व की बात क्यों सोचूँ? मेरी ही छाती में लात मारता वह आ रहा है, उसकी रक्षा क्या मेरे बस की है..?"
तभी सामने उन्हें दीखा कि झोपड़े का दरवाज़ा खुला है। एक सब्जी की क्यारी की आड़ में दो कृषक-कन्याएँ दुबकी बैठी हैं। हिरनी-ली आयत आँखों ते टुकुर-टुकुर उनकी ओर देख रही हैं। इतने ही में बाग़ की तरफ़ से, दूध-से सफ़ेद बाल और घनी दाढ़ीवाला, एक आरक्त मुख, विशालकाय वृद्ध आता दीख पड़ा। स्पष्ट ही वह इस भूमि का स्वामी है। लटक आये खुले शरीर में, अब भी स्वास्थ्य की ताम्रवर्ण लालिमा दम-दम कर रही है। पास आकर उसने हाथ की इलिया, कदली-पत्र और दो बड़े-बड़े दोने सामने रख दिये। दोनों में द्राक्षों के गुच्छे हैं, और इलिया में ताज्ञा तोड़े हुए दो-तीन तरह के दूसरे फल हैं । वृद्ध ने अंजना और वसन्त से देश-कुल-जाति
150 :: पुक्तिदूत