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मोक्षमार्ग की पूर्णता
कर्ता-कर्म
हम यहाँ घटरूप कार्य को पर्यायरूप से स्वीकार कर दृष्टान्त देते हैं। जैसे - घट मिट्टी से उत्पन्न हुआ है। उस घट का वास्तविक कर्त्ता तो मिट्टी स्वयं है; क्योंकि मिट्टी स्वयं घटरूप से परिणमित हुई है; लेकिन जब-जब मिट्टी से घट बनता है, तब-तब कुम्हार का योग और उपयोग (इच्छा) उस घट को बनाने में निमित्त है, यह जानकर घट का कर्त्ता कुम्हार को मानने की इस दुनिया की स्थूल धारणा है, जिसे जिनधर्म में मात्र निमित्त कहा गया है । "
जैसे - घट बनने में चक्र, डोर, पानी आदि भी निमित्त हैं; लेकिन जो स्वयमेव चेतन है, सक्रिय है, जानकार है - ऐसे प्रमुख निमित्तकुम्हार को ही उस कार्य का कर्त्ता माना जाता है।
कार्य में जो वस्तु निमित्त होती है, उसे लेकर तो झगड़ा हो ही सकता है, होता ही रहता है।
जैसे - सार्वजनिक धर्मशाला समाज ने बनवायी, उसमें अनेक लोग निमित्त हैं । दातारों के दान के बिना धर्मशाला बनेगी कैसी ? कारीगर चाहिए ही चाहिए। नगर निगम अथवा ग्रामपंचायत की
अनुकूलता के बिना भी धर्मशाला नहीं बनेगी। इंजीनियर तो सबसे पहले आवश्यक होता है; साथ ही साथ आर्किटेक्ट भी इन दिनों में अनिवार्य माना जाता है। मुकादम ( पर्यवेक्षक ) अर्थात् ओवरसियर और मजदूर तो अत्यन्त आवश्यक हैं। इनमें से प्रत्येक व्यक्ति कहेगा की 'मैंने, हमने यह बिल्डिंग बनायी । '
जो-जो ईंट, सीमेंट, लोहा आदि स्वयमेव बिल्डिंगरूप से परिणत हो गये हैं, उनका तो कोई नाम लेने के लिए भी तैयार नहीं है। जो-जो १. समयसार गाथा - १०० की टीका ।
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