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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन, भेद-प्रभेद • सम्यग्दर्शन दो प्रकार का है - सराग सम्यग्दर्शन और वीतराग
सम्यग्दर्शन। • आत्मा की विशुद्धि मात्र वीतराग सम्यग्दर्शन है।
. (सर्वार्थसिद्धि, अध्याय-१, सूत्र-२, पेज-७) • त्रिगुप्तिरूप अवस्था ही वीतराग सम्यक्त्व का लक्षण है।
(द्रव्यसंग्रहगाथा, ४१ की टीका) • प्रशम, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य आदि की अभिव्यक्ति
सराग सम्यक्त्व का लक्षण है। यह ही व्यवहार सम्यक्त्व है। वीतराग सम्यक्त्व निजशुद्धात्मानुभूति लक्षणवाला है और वीतराग चारित्र के अविनाभावी हैं। वह ही निश्चय सम्यक्त्व हैं।
. (परमात्मप्रकाश अधिकार-२, गाथा-१७) • सम्यग्दर्शन सामान्य से एक है। निसर्गज और अधिगमज के भेद से दो प्रकार का है।
(तत्त्वार्थसूत्र अध्याय-१, सूत्र-३) औपशमिक, क्षायिक व क्षायोपशमिक के भेद से तीन प्रकार का है। आज्ञा सम्यक्त्व आदि की अपेक्षा सम्यक्त्व दस प्रकार का है।
शब्दों की अपेक्षा संख्यात प्रकार का है। • श्रद्धान करनेवाले की अपेक्षा असंख्यात प्रकार का हैं।
(सर्वार्थसिद्धि अध्याय-१, सूत्र-७, पृष्ठ-४) • श्रद्धान करने योग्य पदार्थों व अध्यवसायों की अपेक्षा अनन्त प्रकार
का है। (तत्वार्थवार्तिक अध्याय-१, सूत्र-७,१४,४०,३०) छदास्थों का सम्यक्त्व भी सिद्धों के समान है • उपशम, क्षायिक व क्षायोपशमिक इन तीनों सम्यक्त्वों में यथार्थ
श्रद्धान के प्रति कोई भेद नहीं है। • वीतराग सर्वज्ञप्रणीत जीवादि पदार्थों के विषय में सम्यक् श्रद्धान व