Book Title: Mokshmarg Ki Purnata
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 189
________________ 188 मोक्षमार्ग की पूर्णता ः सम्यग्ज्ञान ८. जिस-जिस प्रकार से जीवादि पदार्थ अवस्थित हैं, उस-उस प्रकार से उनका जानना-सम्यग्ज्ञान है। (सर्वार्थसिद्धि अध्याय-१, सूत्र-५, पृष्ठ-१३) ९. ज्ञान के पहिले सम्यग्विशेषण विमोह (अनध्यवसाय) संशय और विपर्यय ज्ञानों का निराकरण करने के लिए दिया गया है। .. (सर्वार्थसिद्धि अध्याय-१, सूत्र-१, पृष्ठ-५) १०. जिसके द्वारा द्रव्य, गुण, पर्यायों को जानते हैं, उसे ज्ञान कहते हैं। . (धवला पुस्तक-१, खण्ड-१, भाग-१, पृष्ठ-१४४) ११. जिससे यथार्थ रीति से वस्तु जानी जाय उसे संवित् (ज्ञान) __ कहते हैं। (धवला पुस्तक-१, खण्ड-१, भाग-१, पृष्ठ-१४५) १२. शुद्धनय की विवक्षा में वस्तुस्वरूप का उपलम्भ करनेवाले धर्म ___को ही ज्ञान कहा है। १३. सद्भाव अर्थात् वस्तुस्वरूप का निश्चय करनेवाले धर्म को ज्ञान कहते हैं। १४. सविकल्प उपयोग का नाम ज्ञान है। (द्रव्यसंग्रह गाथा-४, टीका) १५. सत्यार्थ का प्रकाश करनेवाली शक्ति विशेष का नाम ज्ञान है। १६. मति, श्रुत, अवधि, मनःपर्यय और केवल ये पाँच ज्ञान हैं। . . (तत्त्वार्थसूत्र अध्याय-१, सूत्र-९) १७. नय व प्रमाण के विकल्प पूर्वक जीवादि पदार्थों का यथार्थ ज्ञान . सम्यग्ज्ञान है। (बृहद्नयचक्र, गाथा-३२६, पृष्ठ-१६२) १८. जो ज्ञान वस्तु के स्वरूप को न्यूनतारहित तथा अधिकतारहित, विपरीततारहित, जैसा का तैसा, सन्देह रहित जानता है, उसको आगम के ज्ञाता पुरुष सम्यग्ज्ञान कहते हैं। (रत्नकरण्ड श्रावकाचार, श्लोक-४२, पृष्ठ-८३) १९. आत्मस्वरूप और अन्य पदार्थ के स्वरूप का जो संशय, विमोह

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