Book Title: Mokshmarg Ki Purnata
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 187
________________ 186 186 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन लब्धि आदि जब देशनालब्धि और काललब्धि आदि बहिरंग कारण तथा करणलब्धिरूप अन्तरंग कारण रूप सामग्री की प्राप्ति होती है, तभी यह भव्य प्राणी विशुद्ध सम्यग्दर्शन का धारक हो सकता है। (महापुराण, सर्ग-९, श्लोक ११६, पृष्ठ-११९) (विष आदि के नाश की भाँति) दर्शनमोह के नाश में भी द्रव्य, क्षेत्र, काल व भाव हेतु होते हैं। ___ तहाँ जिनेन्द्र बिम्ब आदि तो द्रव्य हैं, समवशरण आदि क्षेत्र हैं। अर्ध-पुद्गलपरावर्तन विशेष काल है, अधःप्रवृत्तिकरण आदि भाव है। उस मोहनीय कर्म का अभाव होने पर ही उपशमादि की प्रतिपत्ति होती है। दूसरे प्रकारों से उन उपशम आदि के होने का अभाव है। . (श्लोकवार्तिक पुस्तक-३,१,३,११,८२,२२) _ 'आदि' शब्द से जाति स्मरण आदि का अर्थात् जातिस्मरण, जिनबिम्बदर्शन, धर्मश्रवण, जिनमहिमादर्शन, देवर्द्धिदर्शन व वेदना आदि का ग्रहण होता है। ये जातिस्मरण आदि बाह्यनिमित्त हैं। . (सर्वार्थसिद्धि अध्याय-२, सूत्र-३) तीर्थंकर, केवली, श्रमण, भवस्मरण, शास्त्र, देवमहिमा आदि बहुत प्रकार के बाह्य हेतु मानने चाहिए। (वृहत् नयचक्र गाथा-३१६) अल्पाक्षरवाले शब्द से पूज्य शब्द पहले रखा जाता है, इसलिए सूत्र में पहले ज्ञान शब्द को न रखकर दर्शन शब्द को रखा है। १५. प्रश्न - सम्यग्दर्शन पूज्य क्यों हैं? उत्तर - क्योंकि सम्यग्दर्शन से ज्ञान में समीचीनता आती है। (सर्वार्थसिद्धि अध्याय-१, सूत्र-१,७,५)

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