Book Title: Mokshmarg Ki Purnata
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 216
________________ जिनेन्द्रकथित शास्त्राभ्यास से लाभ (रत्नकरण्ड श्रावकाचार : अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग भावना) १. माया, मिथ्यात्व, निदान - इन तीन शल्यों का ज्ञानाभ्यास से नाश होता है। . २. ज्ञान के अभ्यास से ही मन स्थिर होता है। ३. अनेक प्रकार के दुःखदायक विकल्प नष्ट हो जाते हैं। ४. शास्त्राभ्यास से ही धर्मध्यान व शुक्लध्यान में अचल होकर बैठा जाता है। ५. ज्ञानाभ्यास से ही जीव व्रत-संयम से चलायमान नहीं होते। ६. जिनेन्द्र का शासन प्रवर्तता है। अशुभ कर्मों का नाश होता है। ७. जिनधर्म की प्रभावना होती है। ८. कषायों का अभाव हो जाता है। ९. ज्ञान के अभ्यास से ही लोगों के हृदय में पूर्व का संचित कर रखा हुआ पापरूप ऋण नष्ट हो जाता है। १०. अज्ञानी जिस कर्म को घोर तप करके कोटि पूर्व वर्षों में खिपाता है, उस कर्म को ज्ञानी अंतर्मुहूर्त में ही खिपा देता है। ११. ज्ञान के प्रभाव से ही जीव समस्त विषयों की वाञ्छा से रहित होकर संतोष धारण करते हैं। १२. शास्त्राभ्यास से ही उत्तम क्षमादि गुण प्रगट होते हैं। १३. भक्ष्य-अभक्ष्य का, योग्य-अयोग्य का, त्यागने-ग्रहण करने योग्य का विचार होता है। १४. ज्ञान बिना परमार्थ और व्यवहार दोनों नष्ट होते हैं। १५. ज्ञान के समान कोई धन नहीं है और ज्ञानदान समान कोई अन्य दान नहीं है। १६. दुःखित जीव को सदा ज्ञान ही शरण अर्थात् आधार है। १७. ज्ञान ही स्वदेश में एवं परदेश में सदा आदर कराने वाला परम धन है। १८. ज्ञान धन को कोई चोर चुरा नहीं सकता, लूटने वाला लूट नहीं सकता, खोंसनेवाला खोंस नहीं सकता। १९. ज्ञान किसी को देने से घटता नहीं है, जो ज्ञान-दान देता है; उसका ज्ञान बढ़ता जाता है। २०. ज्ञान से ही सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है। २१. ज्ञान से ही मोक्ष प्रगट होता है।

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