Book Title: Mokshmarg Ki Purnata
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 209
________________ 208 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यक्चारित्र के सद्भाव में या असद्भाव में उसके सद्भाव से ही चारित्र का सद्भाव होता है। (समयसार आत्मख्याति, गाथा-२७३) ९. दर्शन-ज्ञान प्रधान चारित्र से यदि वह वीतराग हो तो मोक्ष प्राप्त होता है, और उससे ही यदि वह सराग हो तो देवेन्द्र, असुरेन्द्र व नरेन्द्र के वैभव क्लेशरूप बन्ध की प्राप्ति होती है। (प्रवचनसार तत्त्वप्रदीपिका, गाथा-६, पृष्ठ-१०) १०. यह जीव श्रद्धान या ज्ञान सहित होता हुआ भी यदि चारित्ररूप पुरुषार्थ के बल से रागादि विकल्परूप असंयम से निवृत्त नहीं होता तो उसका वह श्रद्धान व ज्ञान उसका क्या हित कर सकता है? कुछ भी नहीं। (प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा-२३७) ११. धर्म शब्द से - अहिंसा लक्षणधर्म, सागार-अनागारधर्म, उत्तमक्षमादिलक्षणधर्म, रत्नत्रयात्मकधर्म, तथा मोह क्षोभ रहित आत्मा का परिणाम या शुद्ध वस्तुस्वभाव ग्रहण करना चाहिए। वह ही धर्म पर्यायान्तर शब्द द्वारा चारित्र भी कहा जाता है। (प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा-११, पृष्ठ-२०) १२. मुमुक्षु जनों को इष्ट फलरूप होने के कारण वीतरागचारित्र उपादेय है। (प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा-११, पृष्ठ-२०) १३. जिसमें कषाय कण विद्यमान होने से जीव को जो पुण्य बन्ध की प्राप्ति का कारण है, ऐसे सराग चारित्र को वह सराग चारित्र क्रम से आ पड़ने पर भी (गुणस्थान) आरोहण के क्रम में बलात् चारित्र मोह के मंद उदय से आ पड़ने पर भी) दूर उल्लंघन करके ... (प्रवचनसार तत्त्वप्रदीपिका, गाथा-५, पृष्ठ-९) १४. अनिष्ट फलप्रदायी होने से सराग चारित्र हेय है। (प्रवचनसार तत्त्वप्रदीपिका, गाथा-६, पृष्ठ-१०) १५. जो वह धर्म परिणत स्वभाव वाला होनेपर भी शुभोपयोग परिणति के साथ युक्त होता है, तब जो विरोधी शक्ति सहित होने से

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