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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्ज्ञान जीव का भी विनाश हो जायेगा, क्योंकि लक्षण से रहित लक्ष्य पाया नहीं जाता। (धवला पुस्तक ६, खण्ड-१, भाग-१, पृष्ठ ६ और ७)
३. प्रश्न - ज्ञान का विनाश नहीं मानने पर सभी जीवों के ज्ञान का अस्तित्व प्राप्त होता है?
उत्तर - ज्ञान का विनाश नहीं मानने पर यदि सर्व जीवों के ज्ञान का अस्तित्व प्राप्त होता है तो होने दो, उसमें कोई विरोध नहीं है। अपना 'अक्षर का अनन्तवाँ भाग ज्ञान नित्य उद्घाटित रहता है। इस सूत्र के अनुकूल होने से सर्व जीवों के ज्ञान का अस्तित्व सिद्ध है।
(धवला पुस्तक ६, खण्ड-१, भाग-१, पृष्ठ ६ और ७). ४. प्रश्न - कर्म विद्यमान मत्यादि का आवरण करता है या अविद्यमान का? यदि विद्यमान का तो जब वह स्वरूपलाभ करके विद्यमान ही है तो आवरण कैसा? और यदि अविद्यमान का तो भी खरविषाण की तरह उसका आवरण कैसा?
उत्तर - द्रव्यार्थदृष्टि से सत् और पर्यायदृष्टि से असत् मति आदि का आवरण होता है। अपना मति आदि का कहीं प्रत्यक्षीभूत ढेर नहीं लगा है, जिसको ढक देने से मत्यावरण आदि कहे जाते हों; किन्तु मत्यावरण आदि के उदय से आत्मा में मति आदि ज्ञान उत्पन्न नहीं होते; इसलिए उन्हें आवरण संज्ञा दी गयी है।
___ (राजवार्तिक अध्याय-८, खण्ड-२, पृष्ठ-८७) ५. प्रश्न - इन सातों ज्ञानों के सात ही आवरण क्यों नहीं?
उत्तर - नहीं होते; क्योंकि, पाँच ज्ञानों के अतिरिक्त अन्य कोई ज्ञान पाये नहीं जाते। किन्तु इससे मत्यज्ञान, श्रुतज्ञान और विभंगज्ञान का अभाव नहीं हो जाता; क्योंकि, उनका यथाक्रम से आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान में अन्तर्भाव होता है।