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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन
साधन की प्रधानता की है; क्योंकि अरहन्तदेवादिक का श्रद्धान सच्चे तत्त्वार्थ श्रद्धान का कारण है और कुदेवादिक का श्रद्धान कल्पित तत्त्वश्रद्धान का कारण है । सो बाह्य कारण की प्रधानता से कुदेवादिक का श्रद्धान छुड़ाकर सुदेवादिक का श्रद्धान कराने के अर्थ देव-गुरु-धर्म के श्रद्धांन को मुख्य लक्षण कहा है।
इसप्रकार भिन्न-भिन्न प्रयोजनों की मुख्यता से भिन्न-भिन्न लक्षण कहे हैं। " (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ-- ३२३ - ३२७, जयपुर प्रकाशन )
१३. प्रश्न - सम्यग्दर्शन पूज्य क्यों है?
उत्तर - क्योंकि सम्यग्दर्शन से ज्ञान में समीचीनता आती है। (सर्वार्थसिद्धि अध्याय- १, सूत्र )
इन तीनों दर्शन - ज्ञान - चारित्र में पहिले समस्त प्रकार के उपायों से सम्यग्दर्शन भलेप्रकार अंगीकार करना चाहिए; क्योंकि इसके अस्तित्व में ही सम्यग्ज्ञान और सम्यम्चारित्र होता है।
यद्यपि सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान ये दोनों एक साथ उत्पन्न होते हैं, तथापि इनमें लक्षणभेद से पृथकता सम्भव है।
( पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, २१, ३२ ) सम्यग्दर्शन की आराधना करके ही सम्यग्ज्ञान की आराधना करनी चाहिए; क्योंकि ज्ञान सम्यग्दर्शन का फल है। जिसप्रकार प्रदीप और प्रकाश साथ ही उत्पन्न होते हैं, फिर भी प्रकाश प्रदीप का कार्य है, उसीप्रकार यद्यपि सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान साथ साथ होते हैं, फिर भी सम्यग्ज्ञान कार्य है और सम्यग्दर्शन उसका कारण।
(अनगारधर्मामृत अध्याय - ३, श्लोक - १५ ) जैसे कोई धन का अर्थी पुरुष राजा को जानकर ( उसकी ) श्रद्धा करता है और फिर प्रयत्नपूर्वक उसका अनुचरण करता है अर्थात् उसकी सेवा करता है, उसी प्रकार मोक्ष के इच्छुक को जीव रूपी राजा को