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________________ 184 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन साधन की प्रधानता की है; क्योंकि अरहन्तदेवादिक का श्रद्धान सच्चे तत्त्वार्थ श्रद्धान का कारण है और कुदेवादिक का श्रद्धान कल्पित तत्त्वश्रद्धान का कारण है । सो बाह्य कारण की प्रधानता से कुदेवादिक का श्रद्धान छुड़ाकर सुदेवादिक का श्रद्धान कराने के अर्थ देव-गुरु-धर्म के श्रद्धांन को मुख्य लक्षण कहा है। इसप्रकार भिन्न-भिन्न प्रयोजनों की मुख्यता से भिन्न-भिन्न लक्षण कहे हैं। " (मोक्षमार्गप्रकाशक, पृष्ठ-- ३२३ - ३२७, जयपुर प्रकाशन ) १३. प्रश्न - सम्यग्दर्शन पूज्य क्यों है? उत्तर - क्योंकि सम्यग्दर्शन से ज्ञान में समीचीनता आती है। (सर्वार्थसिद्धि अध्याय- १, सूत्र ) इन तीनों दर्शन - ज्ञान - चारित्र में पहिले समस्त प्रकार के उपायों से सम्यग्दर्शन भलेप्रकार अंगीकार करना चाहिए; क्योंकि इसके अस्तित्व में ही सम्यग्ज्ञान और सम्यम्चारित्र होता है। यद्यपि सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान ये दोनों एक साथ उत्पन्न होते हैं, तथापि इनमें लक्षणभेद से पृथकता सम्भव है। ( पुरुषार्थसिद्ध्युपाय, २१, ३२ ) सम्यग्दर्शन की आराधना करके ही सम्यग्ज्ञान की आराधना करनी चाहिए; क्योंकि ज्ञान सम्यग्दर्शन का फल है। जिसप्रकार प्रदीप और प्रकाश साथ ही उत्पन्न होते हैं, फिर भी प्रकाश प्रदीप का कार्य है, उसीप्रकार यद्यपि सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान साथ साथ होते हैं, फिर भी सम्यग्ज्ञान कार्य है और सम्यग्दर्शन उसका कारण। (अनगारधर्मामृत अध्याय - ३, श्लोक - १५ ) जैसे कोई धन का अर्थी पुरुष राजा को जानकर ( उसकी ) श्रद्धा करता है और फिर प्रयत्नपूर्वक उसका अनुचरण करता है अर्थात् उसकी सेवा करता है, उसी प्रकार मोक्ष के इच्छुक को जीव रूपी राजा को
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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