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________________ सम्यग्दर्शन के उत्पत्ति के नियम 185 जानना चाहिए, और फिर इसी प्रकार उसका श्रद्धान करना चाहिए। और तत्पश्चात् उसी का अनुचरण करना चाहिए अर्थात् अनुभव के द्वारा उसमें तन्मय होना चाहिए। (समयसार गाथा १७-१८) सामान्य तथा विशेष द्रव्य सम्बन्धी अविरुद्धज्ञान ही सम्यक्त्व की सिद्धि करता है। उससे विपरीत ज्ञान नहीं। (बृहत्नयचक्र गाथा-२४८) ___ सम्यग्दर्शन के होते ही जो भूतपूर्व ज्ञान व चारित्र था, वह सम्यक् विशेषण सहित हो जाता है। अतः सम्यग्दर्शन अभूतपूर्व के समान ही सम्यग्ज्ञान व सम्यक्चारित्र को उत्पन्न करता है, ऐसा कहा जाता है। १४. प्रश्न - सूत्र में पहिले ज्ञान का ग्रहण करना उचित है; क्योंकि एक तो दर्शन ज्ञानपूर्वक होता है और दूसरे ज्ञान में दर्शन शब्द की अपेक्षा कम अक्षर है? उत्तर - यह कहना युक्त नहीं है; क्योंकि दर्शन और ज्ञान युगपत् उत्पन्न होते हैं। जैसे मेघ पटल के दूर हो जाने पर सूर्य के प्रताप और प्रकाश एक साथ प्रगट होते हैं। उसी प्रकार जिस समय आत्मा की सम्यग्दर्शन पर्याय उत्पन्न होती है, उसी समय उसके मति-अज्ञान और श्रुत अज्ञान का निराकरण होकर मतिज्ञान और श्रुत ज्ञान प्रगट होते हैं। (सर्वार्थसिद्धि अध्याय-१, सूत्र-१, पृष्ठ-५) सम्यग्दर्शन के उत्पति के नियम - वह सम्यग्दर्शन निसर्ग से अर्थात् परिणामभाव से और अधिगम से अर्थात् उपदेश के निमित्त से उत्पन्न होता है। (तत्त्वार्थसूत्र अध्याय-१, सूत्र-३) जिसप्रकार औपशमिक सम्यग्दर्शन निसर्ग व अधिगम दोनों से होता है, उसी प्रकार क्षायोपशमिक व क्षायिक सम्यक्त्व भी दोनों प्रकार से होते हुए भले प्रकार प्रतीत हो रहे हैं। (श्लोकवार्तिक अधिकार-२, ३)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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