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सम्यक्त्व के विभिन्न लक्षणों का समन्वय
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इसप्रकार सम्यक्त्व का लक्षण निर्देश किया।
१२. यहाँ प्रश्न है कि सच्चा तत्त्वार्थश्रद्धान व आपा-पर का श्रद्धान व आत्मश्रद्धान व देव-गुरु-धर्म का श्रद्धान सम्यक्त्व का लक्षण कहा। तथा इन सर्व लक्षणों की परस्पर एकता भी दिखायी सो जानी; परन्तु अन्य-अन्य प्रकार लक्षण कहने का प्रयोजन क्या? ..... उत्तर - यह चार लक्षण कहे, उनमें सच्ची दृष्टि से एक लक्षण ग्रहण करने पर चारों लक्षणों का ग्रहण होता है। तथापि मुख्य प्रयोजन भिन्न-भिन्न विचार कर अन्य-अन्य प्रकार लक्षण कहे हैं। .. जहाँ तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षण कहा है, वहाँ तो प्रयोजन है कि इन तत्त्वों को पहिचाने तो यथार्थ वस्तु के स्वरूप का व अपने हित-अहित का श्रद्धान करे तब मोक्षमार्ग में प्रवर्ते।
तथा जहाँ आपा-पर का भिन्न श्रद्धान लक्षण कहा है, वहाँ तत्त्वार्थश्रद्धान का प्रयोजन जिससे सिद्ध हो उस श्रद्धान को मुख्य लक्षण कहा है। जीव-अजीव के श्रद्धान का प्रयोजन आपा-पर का भिन्न श्रद्धान करना है।
तथा आस्रवादिक के श्रद्धान का प्रयोजन रागादिक छोड़ना है, सो आपा-पर का भिन्न श्रद्धान होने पर परद्रव्य में रागादि न करने का श्रद्धान होता है।
इसप्रकार तत्त्वार्थश्रद्धान का प्रयोजन आपा-पर के भिन्न श्रद्धान से सिद्ध होता जानकर इस लक्षण को कहा है।
तथा जहाँ आत्मश्रद्धान लक्षण कहा है, वहाँ आपा-पर के भिन्न श्रद्धान का प्रयोजन इतना ही है कि - आपको आप जानना। आपको आप जानने पर, पर का भी विकल्प कार्यकारी नहीं है। ऐसे मूलभूत प्रयोजन की प्रधानता जानकर आत्मश्रद्धान को मुख्य लक्षण कहा है।
तथा जहाँ देव-गुरु-धर्म का श्रद्धान लक्षण कहा है, वहाँ बाह्य