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सम्यग्दर्शन, भेद-प्रभेद
173 ज्ञान में दोनों - गृहस्थ व तपोधन साधुओं के समान ही होते हैं, परन्तु इनके चारित्र में भेद हैं।
(पंचास्तिकाय तात्पर्यवृत्ति गाथा १६०, पृष्ठ-२३३) जैसे छद्मस्थ के श्रुतज्ञान के अनुसार प्रतीति पाइए है.... जैसा सप्त तत्त्वनि का श्रद्धान छद्मस्थ के भया था, तैसा ही केवली सिद्ध भगवान् के पाइए है। ज्ञानादिक की हीनता अधिकता होते भी तिर्यंचादिक या केवली सिद्ध भगवान के सम्यक्त्व गुण समान हैं।
(मोक्षमार्गप्रकाशक, अध्याय-९, पृष्ठ-३२९) सम्यग्दर्शन में सम्यक् शब्द का महत्व । 'सम्यक्' शब्द अव्युत्पन्न अर्थात् रौढिक और व्युत्पन्न अर्थात् व्याकरण सिद्ध है। जब यह व्याकरण से सिद्ध किया जाता है तब 'सम्' उपसर्ग पूर्वक अञ्च्' धातु से क्विप् प्रत्यय करने पर 'सम्यक्'
शब्द बनता है। • संस्कृत में इसकी व्युत्पत्ति समञ्चति इति सम्यक् इसप्रकार होती है। ___प्राकृत में इसका अर्थ प्रशंसा है। • सूत्र में आये हुए सम्यक् इस शब्द को दर्शन, ज्ञान और चारित्र इनमें
से प्रत्येक शब्द के साथ जोड़ लेना चाहिए। यथा - सम्यग्दर्शन,
सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र। • पदार्थों के यथार्थ ज्ञान-श्रद्धान का संग्रह करने के लिए दर्शन के ___ पहले सम्यक् विशेषण दिया है।
(सर्वार्थसिद्धि अध्याय-१, सूत्र-१, पृष्ठ-५) सम्यग्दर्शन के पश्चात् भवधारण की सीमा • जो जीव मुहुर्त काल पर्यन्त भी सम्यग्दर्शन को प्राप्त करके अनन्तर
छोड़ देते हैं, वे भी इस संसार में अनन्तानन्त काल पर्यन्त नहीं