Book Title: Mokshmarg Ki Purnata
Author(s): Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Smarak Trust

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Page 175
________________ 174 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन रहते। अर्थात् उनको अधिक से अधिक अर्द्धपुद्गल परिवर्तन काल मात्र ही संसार शेष रहता है इससे अधिक नहीं। (भगवती आराधना, गाथा-५३) • जो मनुष्य जिस भव में दर्शनमोह की क्षपणा का प्रस्थापन करता है, वह दर्शनमोह के क्षीण होने पर तीन भव में नियम से मुक्त हो जाता है। (पंचसंग्रह प्राकृत अधिकार-१, गाथा-२०३) जो सम्यग्दर्शन से पतित नहीं होते उनको उत्कृष्टतः सात या आठ भवों का ग्रहण होता है और जघन्य से दो-तीन भवों का। इतने भवों के पश्चात् उनके संसार का उच्छेद हो जाता है। जो सम्यक्त्व से च्युत हो गये हैं, उनके लिए कोई नियम नहीं है। (राजवार्तिक अध्याय-४, सूत्र-२५, पृष्ठ-२४३) दर्शनमोह का क्षय हो जाने पर उस ही भव में या तीसरे भव में अथवा मनुष्य-तिर्यंच की पूर्व में आयु बाँध ली हो तो भोगभूमि की अपेक्षा चौथे भव में सिद्धि प्राप्त करते हैं। चौथे भव को उल्लंघन नहीं करते। ०००औपशमिक व क्षायोशमिक सम्यक्त्व की भाँति यह नाश को प्राप्त नहीं होता। . (लब्धिसार गाथा-१६५) • कितने ही जीव सुदेवत्व और सुमानुषत्व को पुनः पुनः प्राप्त करके सात-आठ भवों के पश्चात् नियम से कर्मक्षय करते हैं। (वसुनंदिश्रावकाचार, गाथा-२६९) प्रश्नोत्तर १. प्रश्न - दृश धातु की सामान्य से देखना' ऐसी व्युत्पत्ति जगत् प्रसिद्ध है। वहाँ “सम्यक् देखता है जिसके द्वारा" ऐसे करण प्रत्यय करने पर जो इष्ट लक्षण प्राप्त होता है, वह आप स्याद्वादियों के यहाँ प्राप्त नहीं होता है। भले प्रकार देखना ऐसा भाव साधनरूप अर्थ भी नहीं मिलता है?

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