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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन आस्रव-बन्ध के श्रद्धान बिना पूर्व अवस्था को किसलिये छोड़ता है? इसलिये आस्रवादिक के श्रद्धानरहित आपापर का श्रद्धान करना सम्भवित नहीं है। - ___ तथा यदि आस्रवादिक के श्रद्धान सहित होता है, तो स्वयमेव ही सातों तत्त्वों के श्रद्धान का नियम हुआ। तथा केवल आत्मा का निश्चय है, सो पर का पररूप श्रद्धान हुए बिना आत्मा का श्रद्धान नहीं होता, इसलिये अजीव का श्रद्धान होनेपर ही जीव का श्रद्धान होता है। .. तथा उसके पूर्ववत् आस्रवादिक का भी श्रद्धान होता ही होता है, इसलिये यहाँ भी सातों तत्त्वों के ही श्रद्धान का नियम जानना।
तथा आस्रवादिक के श्रद्धान बिना आपापर का श्रद्धान व केवल आत्मा का श्रद्धान सच्चा नहीं होता; क्योंकि आत्मा द्रव्य है, सो तो शुद्ध-अशुद्ध पर्याय सहित है। ___ जैसे – तन्तु अवलोकन बिना पट का अवलोकन नहीं होता, उसी प्रकार शुद्ध-अशुद्ध पर्याय पहिचाने बिना आत्मद्रव्य का श्रद्धान नहीं होता; उस शुद्ध-अशुद्ध अवस्था की पहिचान आस्रवादिक की पहिचान से होती है।
तथा आस्रवादिक के श्रद्धान बिना आपापर का श्रद्धान व केवल आत्मा का श्रद्धान कार्यकारी भी नहीं है; क्योंकि श्रद्धान करो या न करो, आप है सो आप है ही, पर है सो पर है। __ तथा आस्रवादिक का श्रद्धान हो तो आम्रव-बन्ध का अभाव करके संवर-निर्जरारूप उपाय से मोक्षपद को प्राप्त करे।
तथा जो आपा-पर का भी श्रद्धान कराते हैं, सो उसी प्रयोजन के अर्थ कराते हैं; इसलिये आम्रवादिक के श्रद्धान सहित आपा-पर का जानना व आपका जानना कार्यकारी है।