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श्रीकानजीस्वामी के उद्गार
121 नाश होता है और सम्यग्दर्शन प्रकट होता है - ऐसा श्री धवलग्रन्थ में वर्णन आता है। तो क्या परद्रव्य के लक्ष्य से सम्यग्दर्शन उत्पन्न होता है ?
उत्तर - श्री धवलग्रन्थ में जो ऐसा पाठ आता है, उसका अभिप्राय यह है कि जिनबिंबस्वरूप निज अन्तरात्मा सक्रिय चैतन्यबिम्ब है, उसके ऊपर लक्ष्य और दृष्टि जाने से सम्यग्दर्शन प्रकट होता है और निद्धति व निकांचित कर्म टलते हैं, तब जिनबिंब-दर्शन से सम्यग्दर्शन हुआ और कर्म टला - ऐसा उपचार से कथन किया जाता है। चूंकि पहले जिनबिम्ब के ऊपर लक्ष्य था, इसलिए उसके ऊपर उपचार का आरोप किया जाता है। सम्यग्दर्शन तो स्व के लक्ष्य से ही होता है, पर के लक्ष से तो तीन काल में हो सकता नहीं - ऐसी वस्तुस्थिति है और वही स्वीकार्य है।
(आत्मधर्म : जून १९८०, पृष्ठ-२४) २५. प्रश्न - मिथ्यात्व का नाश स्वसन्मुख होने से ही होता है या कोई और दूसरा उपाय भी है ?
उत्तर - स्वाश्रय से ही मिथ्यात्व का नाश होता है, यही एकमात्र उपाय है। इसके अतिरिक्त दूसरा उपाय प्रवचनसार गाथा ८६ में बताया गया है कि स्वलक्ष्य से शास्त्राभ्यास करना उपायान्तर अर्थात् दूसरा उपाय है, इससे मोह का क्षय होता है। (आत्मधर्म : मार्च १९७७, पृष्ठ-२८)
२६. प्रश्न - सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति का कारण क्या है ?
उत्तर - सम्यग्दर्शन की पर्याय प्रगट हुई है वह राग की मंदता के कारण प्रगट हुई है- ऐसा तो है ही नहीं; किन्तु सूक्ष्मता से देखें तो द्रव्य-गुण के कारण सम्यग्दर्शन हुआ है - ऐसा भी नहीं है।
सम्यग्दर्शन की पर्याय का लक्ष्य और ध्येय व आलम्बन यद्यपि द्रव्य है; तथापि पर्याय अपने ही षट्कारक से स्वतंत्र परिणमित हुई है।
जिससमय जो पर्याय होनेवाली है, उसको निमित्तादि का अवलम्बन तो है नहीं, वह द्रव्य के कारण उत्पन्न हुई है- ऐसा भी नहीं