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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन २३. केवल आत्मा की उपलब्धि सम्यग्दर्शन का लक्षण नहीं है।
यदि वह शुद्ध है तो उसका लक्षण हो सकती है और यदि अशुद्ध है तो नहीं।
(पंचाध्यायी उत्तराई, श्लोक-२१५) २४. आत्मानुभव सहित ही तत्त्वों की श्रद्धा या प्रतीति सम्यग्दर्शन का लक्षण है, बिना आत्मानुभव के नहीं।
(पंचाध्यायी उत्तरार्द्धगाथा-४१५, पृष्ठ-३८३) २५. जीवादि नौ पदार्थ हैं, उन्हें जिसप्रकार से सर्वज्ञ जिन ने निर्दिष्ट
किया, वे उसी प्रकार से स्थित हैं; अन्यथारूप से नहीं - ऐसी जो श्रद्धा, रुचि अथवा प्रतीति है, उसका नाम सम्यग्दर्शन है।
. (तत्त्वानुशासन, श्लोक-२५, पृष्ठ-३३) २६. पाँच अजीव द्रव्य और नव तत्त्वों से चेतयिता चेतन निराला है,
ऐसा श्रद्धान करना और इसके सिवाय अन्य भाँति श्रद्धान नहीं करना, सो सम्यग्दर्शन है। और सम्यग्दर्शन ही आत्मा का स्वरूप है।
(समयसार नाटक, मन्द-७, पृष्ठ-३०) २७. आत्मा को निर्मल-समल के विवक्षा रहित एक रूप श्रद्धान
करना, सम्यग्दर्शन है। (समयसार नाटक, छन्द-२०, पृष्ठ-४०) २८. जब आत्मा स्वयं बुद्धि से अथवा श्री गुरु के उपदेशादि से
आत्म-अनात्म का भेदविज्ञान अथवा स्वभाव-विभाव की पहिचान करता है, तब सम्यग्दर्शन गुण प्रगट होता है।
(समयसार नाटक, पृष्ठ-१२९) २९. अशुद्ध उपयोग, राग-द्वेष-मोहरूप है और राग-द्वेष-मोह का
अभाव सम्यग्दर्शन है। (समवसार नाटक, पृट-२११) ३०. अपने स्वरूप का श्रद्धान, ज्ञान और अपने स्वरूप में ही स्थिर
हो जाना निश्चय सम्यग्दर्शन है। सच्चे देव, शाल, गुरु पर श्रद्धान करना व्यवहार सम्यग्दर्शन है।(प्यानोपदेशकोष, श्लोक-५, पृष्ठ-४)