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• मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन ६. काल सहित पंचास्तिकाय के भेदरूप नव पदार्थ वास्तव में भाव हैं। उन भावों का श्रद्धान सो सम्यक्त्व हैं।
(पंचास्तिकाय गाथा-१०७) ७. उन भूतार्थरूप से जाने गये जीवादि नौ पदार्थों का शुद्धात्मा से भिन्न करके सम्यक् अवलोकन करना, निश्चय सम्यक्त्व है।
. (समयसार तात्पर्यवृत्ति की टीका, गाथा-१६३, पृष्ठ-१७५) ८. शुद्ध जीवास्तिकाय की रुचि निश्चयसम्यक्त्व है।
(पंचास्तिकाय संग्रह, गाथा-१०७ की तात्पर्यवृत्ति टीका) ९. विशुद्ध ज्ञानदर्शन स्वभावरूप निज परमात्मा में जो रुचि वह
सम्यग्दर्शन है। (समयसार, गाथा-२, तात्पर्यवृत्ति टीका) १०. रागादि से भिन्न यह जो स्वभाव से उत्पन्न सुखरूप स्वभाव है,
वही परमात्मतत्त्व है। वही परमात्म तत्त्व सर्व प्रकार उपादेय है,
ऐसी रुचि सम्यक्त्व है। (प्रवचनसार, गाथा-५, तात्पर्यवृत्ति टीका) ११. जो सर्व नय पक्षों से रहित कहा गया है, वह समयसार है। इसी समयसार को सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान संज्ञा है।
___(समयसार गाथा-१४४) १२. भूतार्थनय से ज्ञात जीव, अजीव और पुण्य, पाप तथा आस्रव, संवर, निर्जरा, बन्ध और मोक्ष ये नव तत्त्व सम्यक्त्व हैं।
(समयसार गाथा-१३) १३. हिंसादि रहित धर्म, अठारह दोष रहित देव, निर्ग्रन्थ प्रवचन अर्थात् मोक्षमार्ग व गुरु इनमें श्रद्धा होना सम्यग्दर्शन है।
(मोक्षपाहु, गाथा-९०) १४. ज्ञान में ही भेदनय से जो वीतराग सर्वज्ञ जिनेन्द्रदेव द्वारा कहे हुए
शुद्धात्मा आदि तत्त्व हैं। उनमें, 'यह ही तत्त्व है, ऐसा ही तत्त्व है' इस प्रकार का जो निश्चय है, वह सम्यक्त्व है।
. (द्रव्यसंग्रह गाथा ५२ की टीका पृष्ठ-२१८,१०)