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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यक्चारित्र २८. प्रश्न - त्याग जैनधर्म है कि नहीं ?
उत्तर - सम्यग्दर्शनपूर्वक जितने अंश में वीतरागभाव प्रकट हो, उतने अंश में कषाय का जो त्याग होता है, उसे धर्म कहते हैं। सम्यग्दर्शनादि अस्तिरूप धर्म है और उसीसमय मिथ्यात्व और कषाय का त्याग, वह नास्तिरूप धर्म है। किसी भी दशा में सम्यक्त्वरहित त्याग से धर्म नहीं होता। यदि मंद कषाय हो तो पुण्य ही होता है।
(आत्मधर्म : अप्रेल १९८२, पृष्ठ-२५) २९. प्रश्न - आत्मा की क्षमा कैसे होती है ? ..
उत्तर - अनंतगुणमय, ज्ञानानन्दमय आत्मा का स्वरूप पहचानने से आत्मा की क्षमा होती है। आत्मा में कोई विभाव नहीं - वह तो क्षमा का सागर, शान्ति का सागर है।
यद्यपि अनन्त काल में अनन्तभाव हुए, निकृष्ट भाव भी हुए, तथापि आत्मा तो क्षमा का भण्डार है - उसे पहचानने से ही सच्ची क्षमा होती है।
(आत्मधर्म : अगस्त १९८१, पृष्ठ-२०) ३०. प्रश्न - अहिंसा को परमधर्म कहा है, उसका क्या अर्थ है ?
उत्तर - परजीवों की दया का भाव तो राग है और राग से स्व की हिंसा होती है तथा राग से लाभ मानने में चैतन्य प्रभु का अनादर है। जिस अहिंसा को परमधर्म कहा है; वह तो आत्मा की पर्याय में रागादि की उत्पत्ति ही न होवे - वह है, वही वीतरागी अहिंसा धर्म है। ___पुरुषार्थसिद्धयुपाय गाथा - ४४ में कहा कि आत्मा में रागादि की
अनुत्पत्ति ही अहिंसा और उनकी उत्पत्ति होना ही हिंसा है। ऐसी बात पात्र जीव के बिना किसे रुचे ? (आत्मधर्म : जुलाई १९८०, पृष्ठ-२२-२३)