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मोक्षमार्ग की पूर्णताः सम्यग्दर्शन ४३. सम्यग्दर्शन में तथा अर्हन्तभक्ति में नाम भेद है, अर्थ भेद नहीं है।
(रत्नकरण्ड श्रावकाचार, पृष्ठ-४७९) *४४. दर्शनमोह के उपशान्त होने से ग्रन्थश्रवण के बिना केवल वीतराग
भगवान की आज्ञा से ही जो तत्त्वश्रद्धान उत्पन्न होता है, वह
आज्ञा सम्यक्त्व है। *४५. दर्शनमोह का उपशम होने से ग्रन्थश्रवण के बिना जो कल्याणकारी ____ मोक्षमार्ग का श्रद्धान होता है, उसे मार्ग सम्यग्दर्शन कहते हैं। *४६. तिरेसठ शलाका पुरुषों के पुराण (वृत्तान्त) के उपदेश से जो
तत्त्वश्रद्धान उत्पन्न होता है उसे उपदेश सम्यग्दर्शन कहा है। *४७. मुनि के चारित्रानुष्ठान को सूचित करनेवाले आचारसूत्र को सुनकर - जो तत्त्वार्थश्रद्धान होता है, उसे सूत्र सम्यग्दर्शन कहा गया है। *४८. जिन जीवादि पदार्थों के समूह का अथवा गणितादि विषयों का
ज्ञान दुर्लभ है, उनका किन्हीं बीजपदों के द्वारा ज्ञान प्राप्त करनेवाले भव्यजीव के जो दर्शनमोहनीय के असाधारण उपशमवश
तत्त्वश्रद्धान होता है, उसे बीज सम्यग्दर्शन कहते हैं। *४९. जो भव्यजीव पदार्थों के स्वरूप को संक्षेप से ही जान करके
तत्त्वश्रद्धान को प्राप्त हुआ है, उसके उस सम्यग्दर्शन को संक्षेप
सम्यग्दर्शन कहा जाता है। *५०. जो भव्यजीव १२ अंगों को सुनकर तत्त्वश्रद्धानी हो जाता है,
उसे विस्तार सम्यग्दर्शन से युक्त जानो। *५१. अंग बाह्य आगमों के पढ़ने के बिना भी उनमें प्रतिपादित किसी
पदार्थ के निमित्त से जो अर्थश्रद्धान होता है, वह अर्थ सम्यग्दर्शन
कहलाता है। *५२. अंगों के साथ अंगबाह्य श्रुत का अवगाहन करके जो सम्यग्दर्शन
उत्पन्न होता है, उसे अवगाढ़ सम्यग्दर्शन कहते हैं।