________________
132
मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन के बन्ध का कारण नहीं होता; क्योंकि निश्चय-सम्यग्दर्शन के सद्भाव में मिथ्यात्वसंबंधी बन्धन नहीं होता। - किसी जीव को व्यवहार-सम्यग्दर्शन तो बराबर हो, उसमें किंञ्चित् भी अतिचार न लगने देता हो; परन्तु उसे निश्चय-सम्यग्दर्शन नहीं है तो मिथ्यात्व या मोह का बन्ध बराबर होता रहता है। ... व्यवहार-सम्यग्दर्शन मिथ्यात्व को टालने में समर्थ नहीं है; अपितु निश्चय सम्यग्दर्शन ही मिथ्यात्व का बन्ध नहीं होने देता। अत: यह सिद्धान्त निकला कि निश्चय से बन्ध का नाश होता है, व्यवहार से नहीं।
(आत्मधर्म : जून १९८३, पृष्ठ-२८) ५४. प्रश्न-आत्मा में परिणमन के लिये प्रथम क्या करना चाहिये ?
उत्तर - प्रथम सत्समागम से सत्य वस्तुस्वरूप का श्रवण करना चाहिये।
जहाँ सत्य का श्रवण भी नहीं, वहाँ सत्य का ग्रहण तो हो ही कैसे सकता है? जहाँ ग्रहण नहीं, वहाँ धारण नहीं; जहाँ धारण नहीं, वहाँ रुचि नहीं; और जहाँ रुचि नहीं, वहाँ परिणमन भी नहीं होता। ___जिसे आत्मा की रुचि होती है; उसे प्रथम श्रवण, ग्रहण और धारण होता ही है। इसके पश्चात् अन्तर में परिणमन करने की बात आती है।
(आत्मधर्म : जून १९८३, पृष्ठ-२८) ५५. प्रश्न - आत्मख्याति को सम्यग्दर्शन कहा, आत्मप्रसिद्धि कहा, आत्मानुभव कहा, उसका क्या अर्थ है ?
उत्तर – त्रिकाली आत्मस्वभाव तो प्रसिद्ध ही था, वह कहीं रुका नहीं था; किन्तु अवस्था में पहले उसका भान नहीं था और अब उसका भान होने पर अवस्था में भगवान आत्मा की प्रसिद्धि हुई। निर्मल अवस्था प्रगट होने पर द्रव्य-पर्याय की अभेदता से आत्मा ही प्रसिद्ध हुआ - ऐसा कहा है। . अनुभव में कहीं द्रव्य-पर्याय के भेद नहीं हैं।