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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन ___उत्तर- जिसमें राग और मिथ्यात्व है ही नहीं - उस शुद्ध वस्तु में परिणाम तन्मय होने पर मिथ्यात्व टल जाता है, दूसरा कोई उपाय मिथ्यात्व के दूर करने का नहीं है।
- भाई ! गुण-भेद का विकल्प भी शुद्धवस्तु में नहीं; शुद्धवस्तु की प्रतीति गुण-भेद के विकल्प की अपेक्षा भी नहीं रखती। _ वस्तु में विकल्प नहीं और विकल्प में वस्तु नहीं। इसप्रकार दोनों की भिन्नता जानकर परिणति विकल्प में से हटकर स्वभाव में आवे, तब मिथ्यात्व का अभाव हो जाता है - यही मिथ्यात्व टालने की रीति है। ___ अर्थात् उपयोग और रागादिक का भेदज्ञान होना ही सम्यक्त्व का मार्ग है।
इसलिये विकल्प की अपेक्षा चिदानन्दस्वभाव की अनन्त महिमा भासित होकर उसका अनन्तगुना रस आना चाहिये।
(आत्मधर्म : अगस्त १९७७, पृष्ठ-२६) ३४. प्रश्न - जिसको सम्यग्दर्शन होना ही है, ऐसे जीव की पूर्व भूमिका कैसी होती है ? ___ उत्तर : इस जीव को जैसा वस्तु का स्वरूप है, वैसा सविकल्प निर्णय होता है लेकिन सविकल्प से निर्विकल्पता होती ही है - ऐसा नहीं है।
(आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२१) . ३५. प्रश्न - दृष्टि को स्थिर करने के लिए सामने की वस्तु स्थिर होनी चाहिए, लेकिन दृष्टि तो पलटती रहती है, वह किसतरह स्थिर हो ?
उत्तर - सामने स्थिर वस्तु हो तो उस पर नजर करने से दृष्टि स्थिर हो जाती है। भले ही जब दृष्टिरूप पर्याय स्थिर न रह सकती हो तो भी ध्रुव पर नजर एकाग्र करने से अन्य सम्पूर्ण वस्तु नजर में आ जाती है, सम्पूर्ण आत्मद्रव्य दृष्टि में जाना जाता है।