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सम्यक्चारित्र की पूर्णता
उत्तर - भाई ! चारित्र गुण के सम्यक्पर्याय का विकास एवं पूर्णता क्रम से ही होती है; यह चारित्रगुण की पर्यायगत विशेषता है; उसमें कौन क्या कर सकता है? स्वभाव में प्रश्न नहीं होते। पानी शीतल क्यों है ? अग्नि गरम क्यों है ? गन्ने का रस मीठा क्यों है ? करेला कड़वा क्यों है ? - क्या ऐसे भी प्रश्न करना उचित है ?
हम आपसे पूछते हैं - कपड़े को पानी में डालते ही वह कुछ सैकण्डों में गीला हो जाता है, क्या वही गीला कपड़ा उतने ही अल्प काल में सूख जायेगा ? भले कितनी भी गरमी हो, नहीं सूखेगा; क्योंकि कपड़े का गीला होना तत्काल होता है और गीले कपड़े को सूखने के लिए देर लगती ही है। यह स्वभावगत विशेषता है। अन्य दृष्टान्त भी देखें
मनुष्य शरीर में जन्म से ही जिह्वा/जीभ प्राप्त होती है और दाँत जन्म से तो रहते नहीं है। जन्म के पश्चात् ११-१२ महिने के बाद दाँत आते हैं। उसे दूध के दाँत कहते हैं। वे भी निकल जाते हैं, फिर जीवनभर के लिए दाँत आते हैं। सामान्यतया २०-२१ वर्ष की उम्र में अक्लदाढ़ आती है। कदाचित् दाँत वृद्धावस्था के पहले भी गिर जाते हैं, लेकिन जीभ अन्त तक रहती है। जीभ एवं दाँत का ऐसा स्वरूप क्यों है ? उसका उत्तर शरीरगत स्वभाव ही मानना आवश्यक है। • उसीतरह श्रद्धा गुण की सम्यक्त्वरूप पर्याय की उत्पत्ति एवं उसकी
पूर्णता एकसाथ ही होती है। १३वें गुणस्थान में ज्ञान गुण की पर्याय की पूर्णता होती है। ..... बारहवें गुणस्थान में चारित्र पूर्ण (भाव चारित्र) प्रगट होता है। सिद्ध अवस्था में द्रव्यचारित्र की पूर्ण अवस्था प्रगट होती है। यही इन तीनों गुणों के पूर्ण पर्याय प्रगट होने का स्वरूप है। सम्यक्चारित्र की पूर्ण विकसित अवस्था एवं उत्पाद-व्यय