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मोक्षमार्ग की पूर्णता
राजमार्ग पूर्व की तरफ जाता हो और ऊबड़-खाबड़ मार्ग पश्चिम की तरफ जाता हो - ऐसा तो नहीं बनता। भले मार्ग ऊबड़-खाबड़ हो, परन्तु उसकी दिशा तो राजमार्ग की तरफ ही होगी न?
उसीप्रकार सम्यग्दर्शन - ज्ञान उपरान्त शुद्धोपयोगी चारित्रदशा - वह तो मोक्ष का सीधा राजमार्ग है, उससे तो उसी भव में ही केवलज्ञान और मोक्षपद प्राप्त हो सकता है और ऐसी चारित्रदशा बिना जो सम्यग्दर्शनज्ञान है, वह अभी अपूर्ण मोक्षमार्ग होने से ऊबड़-खाबड़ कहा जाता है, वह कुछ ही भव में मोक्षमार्ग पूर्ण करके मोक्ष को साधेगा।
पूर्ण मोक्षमार्ग हो अथवा अपूर्ण मोक्षमार्ग हो, परन्तु इन दोनों की दिशा तो स्वभाव तरफ की ही है; एक की भी दिशा राग की तरफ नहीं है । रागादिभाव तो मोक्षमार्ग से विपरीत है अर्थात् बन्धमार्ग है, इन रागादि से मोक्षमार्ग नहीं सध सकता । मोक्षमार्ग के आश्रय से बन्धन नहीं और बन्धमार्ग के आश्रय से मोक्ष नहीं ।"१
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उपसंहार एवं लाभ
इस विषय का विशद ज्ञान करने के लिए जिनधर्म - प्रवेशिका (पण्डित टोडरमल स्मारक ट्रस्ट से प्रकाशित ) नामक कृति में अगुरुलघुत्व गुण नामक सामान्य गुण का अंश भी हम आगे दे रहे हैं
८२. “ प्रश्न - अगुरुलघुत्व गुण किसे कहते हैं ?
उत्तर - जिस शक्ति के कारण द्रव्य में द्रव्यपना कायम रहता है अर्थात् एक द्रव्य दूसरे द्रव्यरूप नहीं होता, एक गुण दूसरे गुणरूप नहीं होता और द्रव्य में रहने वाले अनन्त गुण बिखरकर अलग-अलग नहीं हो जाते; उसे अंगुरुलघुत्व गुण कहते हैं।
८३. “ प्रश्न - अगुरुलघुत्व शब्द का क्या अर्थ है ?
१. 'परमार्थ वचनिका' प्रवचन पृष्ठ ७०-७१