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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन अन्य किसी विधि से नहीं; इसप्रकार की दृढ़ श्रद्धा-ज्ञान होना, वही सम्यग्दर्शन होने वाले की योग्यता है। (आत्मधर्म : फरवरी १९८०, पृष्ठ-२४)
५. प्रश्न - सम्यग्दर्शन के लिए खास प्रकार की पात्रता का लक्षण क्या है?
उत्तर - जिसको अपने आत्मा का हित करने के लिए अन्दर से वास्तविक लगन हो, आत्मा को प्राप्त करने की तड़फड़ाहट हो, दरकार हो, वास्तविक छटपटाहट हो; वह कहीं भी अटके बिना - रूके बिना अपना कार्य करेगा ही। (आत्मधर्म : जनवरी १९८०, पृष्ठ-२६)
६. प्रश्न - सम्यग्दर्शन न होने में भावज्ञान की भूल है अथवा आगमज्ञान की?
उत्तर - अपनी भूल है। यह जीव स्व-तरफ नहीं झुककर, परतरफ रुकता है - यही भूल है। विद्यमान शक्ति को अविद्यमान कर दिया, अर्थात् प्राप्त शक्ति को अप्राप्त जैसा समझ लिया, अपनी त्रिकाली शक्ति के अस्तित्व को नहीं पहचाना - यही अपनी भूल है। त्रिकाली वर्तमान शक्ति के अस्तित्व को स्वीकार कर ले - देख ले तो भूल टल जाये।
(आत्मधर्म : जनवरी १९८०, पृष्ठ-२६) ७. प्रश्न - तत्त्वविचार तो सम्यग्दर्शन प्राप्त करने का निमित्त है। उसका मूल साधन क्या है?
उत्तर - मूल साधन अन्दर में आत्मा है, वहाँ दृष्टि का जोर जावे और मैं एकदम पूर्ण परमात्मा ही हूँ' - ऐसा विश्वास आवे, जोर आवे और दृष्टि अन्तर में ढले तब सम्यग्दर्शन होता है। उससे प्रथम तत्त्व का विचार होता है, उसकी भी रुचि छोड़कर जब अन्दर में जाता है तब उस विचार को निमित्त कहा जाता है। (आत्मधर्म : जनवरी १९८०, पृष्ठ-२६)
८. प्रश्न - नव तत्त्व को जानना सम्यग्दर्शन है या शुद्धजीव को जानना सम्यग्दर्शन है?