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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन
उस समय दर्शन - ज्ञान - चारित्रादि सर्व गुणों के परिणाम ( पर्याय ) स्वभाव की ओर झुकते हैं; मात्र श्रद्धा - ज्ञान के ही परिणाम झुकते हैं - ऐसा नहीं है । 'वहाँ सर्व परिणाम उसरूप में एकाग्र होकर प्रवर्तते हैं।' (पं. टोडरमलजी की रहस्यपूर्ण चिट्ठी) ।
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( आत्मधर्म : जनवरी १९७७, पृष्ठ- २४)
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१५. प्रश्न – ध्रुवस्वभाव के साथ निर्मलपर्याय को अभेद करके दृष्टि का विषय मानने में क्या आपत्ति है ?
उत्तर - ध्रुव द्रव्यस्वभाव के साथ निर्मलपर्याय को एकमेक करने से दृष्टि का विषय होता है - ऐसा माननेवाले व्यवहार से निश्चय होना माननेवालों की भाँति ही मिथ्यादृष्टि हैं; उनका जोर पर्याय पर है, ध्रुवस्वभाव पर नहीं है।
सम्यग्दर्शन के विषय में द्रव्य के साथ उत्पादरूप निर्मलपर्याय को साथ लेने से वह निश्चयनय का विषय न रहकर प्रमाण का विषय हो जाता है और प्रमाण स्वयं सद्भूत व्यवहारनय का विषय है । निश्चयनय का विषय अभेद एकरूप द्रव्य है, प्रमाण की भाँति उभय अंशग्राही नहीं है।
यदि पर्याय को द्रव्य के साथ एकमेक किया जाये तो निश्चयनय का विषय जो त्रिकाली सामान्य है, वह नहीं रहता; परन्तु प्रमाण का विषय हो जाने से दृष्टि में भूल है, विपरीतता है।
अनित्य नित्य को जानता है; पर्याय द्रव्य को जानती है; पर्यायरूप व्यवहार निश्चयरूप ध्रुव द्रव्य को जानता है । भेद - अभेद द्रव्य को जानता है; पर्याय जाननेवाली अर्थात् विषयी है और त्रिकाली ध्रुव द्रव्य जाननेवाली पर्याय का विषय है। यदि द्रव्य के साथ निर्मलपर्याय को मिलाकर निश्चयनय का विषय कहा जाये तो विषय करनेवाली पर्याय तो कोई भिन्न नहीं रही; अतः पर्याय को विषयकर्ता के रूप में द्रव्य से