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मोक्षमार्ग की पूर्णता १) यदि सम्यक्त्व होते ही सिद्ध होना मानेंगे तो जीव को मात्र औपशमिक सम्यक्त्वही होगा; अन्य दोनों सम्यक्त्वों का अभाव मानना पड़ेगा।
२) चत्तारि मंगलं आदि पाठ असत्य सिद्ध होंगे।
३) दर्शनमोहनीय कर्म के क्षय के साथ ही चारित्रमोहनीय तथा अन्य तीन घातिकर्म एवं चारों अघाति कर्मों का नाश मानना अनिवार्य सिद्ध होगा।
अथवा ___ आठ कर्मों के स्थान पर मात्र एक ही दर्शनमोहनीय कर्म मानना आवश्यक रहेगा। दर्शनमोहनीय कर्म के तीनों भेदों का कथन भी असत्य सिद्ध होगा।
४) तीनों सम्यक्त्व में से सर्वप्रथम औपशमिक सम्यक्त्व ही होता है, यह आगमोक्त नियम नहीं रह पायेगा।
५) क्षयोपशम ज्ञानपूर्वक ही सिद्ध अवस्था प्राप्त होगी; केवलज्ञान की अनिवार्यता नहीं रहेगी।
६) सम्यक्त्व एवं व्रतों के अतिचारों का सर्वथा अभाव होगा।
७) तत्त्वार्थसूत्र और अन्य आगम ग्रन्थों में सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः ऐसा जो सूत्र है, वह असत्य होने से सम्यग्दर्शनम् मोक्षमार्गः ऐसा बदल करना पड़ेगा।
इसप्रकार अनेक आपत्तियाँ आयेगी, अतः चारित्र गुण का सम्यक् परिणमन होने के बाद चारित्र की पूर्णता के लिए उसमें क्रमिक विकास मानना आवश्यक ही है। वास्तविक जो वस्तुस्थिति है, उसे वैसा ही मानना चाहिए।
७५. प्रश्न - फिर भी मन में प्रश्न उत्पन्न होता ही है कि चारित्र का विकास एवं पूर्णता क्रम से ही क्यों होती है ?