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मोक्षमार्ग की पूर्णता स्वभावरूप होकर परिणमा-प्रकट हुआ।चेतन-अचेतन की भिन्न प्रतीति से वह सम्यक्त्वगुण निजजातिस्वरूप होकर परिणमा।" ___ इस मिश्रधर्म विषय पर आध्यात्मिक सत्पुरुष श्री कानजीस्वामी ने
भी विशेष प्रवचन किए हैं, जो अनुभवप्रकाश प्रवचन' नाम से प्रकाशित हैं। जिज्ञासु पाठक उन्हें अवश्य देखें।
क्षायिक सम्यक्त्व की पूर्णता-अपूर्णता को विषय बनाकर जो खुलासा स्वामीजी ने किया है उसका महत्वपूर्ण अंश इसप्रकार है - ___३४. प्रश्न :-क्षायिक सम्यग्दर्शन के काल में श्रद्धा गुण की क्षायिक पर्याय पूर्ण शुद्ध है या नहीं ? यदि वह पूर्ण शुद्ध है तो उसे सिद्ध कहना चाहिए; क्योंकि एक गुण सभी गुणों में व्यापक है, इस अपेक्षा से क्षायिक सम्यक्त्वी के मिश्रपना सिद्ध नहीं होता तथा यदि उसे किंचित् शुद्ध कहें तो सम्यक्त्व गुण का घातक मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबंधी कर्म उसके होना चाहिए; किन्तु क्षायिक सम्यग्दृष्टि के मिथ्यात्व तथा अनन्तानुबंधी कर्म का निमित्त तो होता नहीं, अतः उसका सम्यक्गुण पूर्ण शुद्ध है या अपूर्ण?
समाधान :- इसका स्पष्टीकरण यह है कि सम्यक्गुण वहाँ पूर्ण भी है और अपूर्ण भी है - यह विवक्षानुसार समझना पड़ेगा। .. क्षायिक सम्यक्त्वी के मिथ्यात्वरूप आवरण तो नहीं है; परन्तु आवरण मात्र के जाने से सभी गुण सर्वथा सम्यक् नहीं होते, इसकारण अभी परम-सम्यक्पना नहीं है। क्षायिक सम्यक्त्व होने पर अन्य गुण तो परम-सम्यक् हैं ही नहीं; किन्तु जो क्षायिक सम्यक्त्व प्रकट हुआ है, वह भी परम-सम्यक् (परमावगाढ़) नहीं है।
यद्यपि क्षायिक सम्यक्त्वरूप पर्याय में अशुद्धता या अपूर्णता नहीं रही; किन्तु अन्य गुण सर्वथा शुद्ध नहीं होने से क्षायिक को भी परम१. अनुभवप्रकाश, पृष्ठ-८०