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सम्यक्चारित्र की पूर्णता
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चौथे गुणस्थान में द्रव्यानुयोग ने जिस विवक्षा से चारित्र का कथन किया है, उसे भी सबको स्वीकार करना चाहिए। हठ करने में हित नहीं है।
४९. प्रश्न - आप कुछ भी कहो; किन्तु चौथे गुणस्थान में आपको चारित्र मनवाने का हठ तो दिखता ही है - ऐसा हम क्यों नहीं समझें ?
उत्तर - भाईसाहब ! आपको हम कुछ प्रश्न पूछते जाते हैं, आप उनका उत्तर देते जाओगे तो सम्पूर्ण विषय स्पष्ट होगा - ऐसा हमें लग रहा है। प्रयास करते हैं -
५०. प्रश्न - मिथ्यात्व गुणस्थान में कौनसा चारित्र है ?
उत्तर - मिथ्यात्व गुणस्थान में सम्यक्त्व न होने के कारण चारित्र तो मिथ्या ही है, इस सम्बन्ध में किसी से कुछ पूछने की और अधिक चर्चा करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है।
५१. प्रश्न - सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान में मिथ्याचारित्र तथा सम्यक्चारित्र में से कौनसा चारित्र है ?
उत्तर - सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान में सम्यक्त्व की विराधना हुई है, मिथ्यात्व नहीं हुआ है और अनन्तानुबन्धीरूप चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से अनन्तानुबन्धी कषायभाव हुए हैं; अत: यहाँ भी चारित्र मिथ्या ही है।
५२. प्रश्न - सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में कौनसा चारित्र है ?
उत्तर- तीसरे गुणस्थान में श्रद्धा मिश्ररूप अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्वरूप । होने से यहाँ चारित्र भी मिश्ररूप अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्वरूप ही है; किन्तु । सम्यक्चारित्र नहीं है।
५३. प्रश्न - चौथा गुणस्थान तो सम्यक्त्वसहित है, अत: हमारा आपसे प्रश्न है कि यहाँ चारित्र कौनसा मानना चाहिए ? मिथ्याचारित्र अथवा सम्यक्चारित्र ?