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________________ सम्यक्चारित्र की पूर्णता 71 चौथे गुणस्थान में द्रव्यानुयोग ने जिस विवक्षा से चारित्र का कथन किया है, उसे भी सबको स्वीकार करना चाहिए। हठ करने में हित नहीं है। ४९. प्रश्न - आप कुछ भी कहो; किन्तु चौथे गुणस्थान में आपको चारित्र मनवाने का हठ तो दिखता ही है - ऐसा हम क्यों नहीं समझें ? उत्तर - भाईसाहब ! आपको हम कुछ प्रश्न पूछते जाते हैं, आप उनका उत्तर देते जाओगे तो सम्पूर्ण विषय स्पष्ट होगा - ऐसा हमें लग रहा है। प्रयास करते हैं - ५०. प्रश्न - मिथ्यात्व गुणस्थान में कौनसा चारित्र है ? उत्तर - मिथ्यात्व गुणस्थान में सम्यक्त्व न होने के कारण चारित्र तो मिथ्या ही है, इस सम्बन्ध में किसी से कुछ पूछने की और अधिक चर्चा करने की कोई आवश्यकता ही नहीं है। ५१. प्रश्न - सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान में मिथ्याचारित्र तथा सम्यक्चारित्र में से कौनसा चारित्र है ? उत्तर - सासादनसम्यक्त्व गुणस्थान में सम्यक्त्व की विराधना हुई है, मिथ्यात्व नहीं हुआ है और अनन्तानुबन्धीरूप चारित्रमोहनीय कर्म के उदय से अनन्तानुबन्धी कषायभाव हुए हैं; अत: यहाँ भी चारित्र मिथ्या ही है। ५२. प्रश्न - सम्यग्मिथ्यात्व गुणस्थान में कौनसा चारित्र है ? उत्तर- तीसरे गुणस्थान में श्रद्धा मिश्ररूप अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्वरूप । होने से यहाँ चारित्र भी मिश्ररूप अर्थात् सम्यग्मिथ्यात्वरूप ही है; किन्तु । सम्यक्चारित्र नहीं है। ५३. प्रश्न - चौथा गुणस्थान तो सम्यक्त्वसहित है, अत: हमारा आपसे प्रश्न है कि यहाँ चारित्र कौनसा मानना चाहिए ? मिथ्याचारित्र अथवा सम्यक्चारित्र ?
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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