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________________ मोक्षमार्ग की पूर्णता उत्तर यहाँ सम्यक्त्व का अस्तित्व होने के कारण कोई भी " समझदार व्यक्ति यही कहेगा कि चौथे गुणस्थान में सम्यक्चारित्र होता है। चौथे गुणस्थान में व्रतरूप चारित्र नहीं है. इस अपेक्षा से चौथे गुणस्थान में चारित्र कहना अयुक्त है और सम्यक्त्व होते हुए भी एवं चारित्रमोहनीय अनंतानुबंधी कषाय परिणाम न होने पर भी सम्यक्चारित्र का स्वीकार न करना भी हठधर्मिता है । 72 - में आचार्यश्री कुंदकुंद ने सम्यक्त्व होते ही चौथे गुणस्थान सम्यक्त्वाचरण चारित्र का स्वीकार किया है । " जैसी जैसी वीतरागता बढ़ती जाती है। तदनुसार सम्यक्चारित्र में शुद्धता का विकास होता रहता है । सम्यक्चारित्र के विकास के साथसाथ सुख-आनंद, संवर- निर्जरा भी सहज ही बढ़ते रहते हैं । सम्यक्त्व होने के बाद सम्यक्चारित्र के विकास के लिए विशेष अधिक पुरुषार्थ करना अति आवश्यक है । • चौथे गुणस्थान से पाँचवें गुणस्थान में चारित्र नियम से वृद्धि को ही प्राप्त होता है। ५४. प्रश्न - चौथे से पाँचवें गुणस्थान में चारित्र बढ़ गया - इसका क्या कारण है ?. उत्तर - निमित्त की अपेक्षा चौथे गुणस्थान में मात्र एक अनन्तानुबन्धी कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक वीतरागता व्यक्त थी, अब पाँचवें गुणस्थान में देशव्रत के ग्रहणपूर्वक अप्रत्याख्यानावरण कषाय चौकड़ी का भी अभाव होने से दो कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक वीतरागता / शुद्धता बढ़ गयी है । उपादानकारण की अपेक्षा विचार किया जाए तो साधक श्रावक ने निज शुद्धात्मा का आश्रय / ध्यान विशेषरूप से किया है। ध्यान की १. चारित्रपाहुड़ गाथा - ८
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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