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________________ 70 मोक्षमार्ग की पूर्णता उत्तर - सम्यक्चारित्र का जन्म/उत्पाद तो श्रद्धा-गुण के सम्यक्रूप पर्याय के समय ही होता है, इन दोनों का जन्म अर्थात् प्रगटता साथसाथ ही होती है। अब सम्यक्चारित्र का विकास किस क्रम से होता है, उसे स्पष्ट करते हैं - ___ वीतराग परिणाम को ही चारित्र कहते हैं। यहाँ बाह्य व्रत, बाह्य संयम, उपवास आदि को चारित्र कहने या नहीं कहने की बात नहीं है। बाह्य पदार्थों के त्यागरूप परिणाम भी यथायोग्य समय पर भूमिकानुसार होते रहते हैं, बाह्य चारित्र/व्यवहार चारित्र का कथन भी सर्वज्ञ भगवान की दिव्यध्वनि में ही आया है। ४७. प्रश्न - सम्यक्चारित्र का विकास गुणस्थान के अनुसार किसप्रकार होता है, स्पष्ट करें। उत्तर - सम्यक्चारित्र की उत्पत्ति सम्यग्दर्शन के साथ-साथ चौथे गुणस्थान में ही होती है, यह स्पष्ट है। इसका कारण चौथे गुणस्थान में मिथ्यात्व एवं अनन्तानुबन्धी कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक व्यक्त वीतरागता है। यथायोग्य संवर एवं निर्जरा तत्त्व भी व्यक्त हो गये हैं। करणानुयोग भी इस विषय का समर्थन करता है। ४८. प्रश्न - करणानुयोग चौथे गुणस्थान को अविरत कहता है, इसकी मुख्यता से चौथे गुणस्थान में चारित्र नहीं है - ऐसा मानने में क्या आपत्ति है? उत्तर - बुद्धिपूर्वक व्रतों का स्वीकार नहीं है, असंयमी है - इसकी मुख्यता से चौथे गुणस्थान में संयमरूप अर्थात् देशसंयमरूप चारित्र, सकल संयमरूप चारित्र नहीं है - ऐसा स्वीकारने में कोई आपत्ति नहीं है। जिनवाणी में जिस अपेक्षा से जो कथन किया है; उसे उस अपेक्षा से स्वीकार करना ही चाहिए।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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