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सम्यक्चारित्र की पूर्णता
४) परमेष्ठी पाँच न रहकर एक सिद्ध परमेष्ठी ही रहेंगे। ५) अरहंत अवस्था प्राप्त न होने के कारण दिव्यध्वनि से उपदेश मिलना समाप्त हो जायेगा । अरहंत परमेष्ठी का अभाव होगा।
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६) आचार्य, उपाध्याय व साधु अवस्था का अस्तित्व न रहने से तीनों परमेष्ठी नहीं रहेंगे। अरहंत तो रहेंगे ही नहीं। पंच णमोकार मंत्र भी 'णमो सिद्धाणं' इस एक पंक्ति का ही रहेगा।
७) कोई मुनिराज रहेंगे नहीं तो आहारदान देने का कार्य बंद हो जायेगा । चरणानुयोग का मानो अभाव ही हो जायेगा ।
८) सम्यक्त्व होते ही सिद्ध बनने से सम्यक्त्वी अथवा व्रती श्रावक, मुनिराज एवं अरहंत द्वारा उपदेश की परंपरा ही नष्ट हो जायेगी । देशना एवं र्देशनालब्धि का भी अभाव हो जायेगा ।
९) सम्यक्त्व होते ही सिद्ध होने से श्रावकव्रत एवं मुनिराज के व्रतों का कथन करने का कारण न रहने से व्रत, उपवास, परीषह, उपसर्ग, अतिचार आदि का अभाव ही हो जायेगा । व्यवहार चारित्र का सर्वथा लोप हो जायेगा।
१०) सम्यक्त्वी को तत्काल ही सिद्ध अवस्था प्राप्त होने से सम्यग्दृष्टि को होनेवाले पुण्य से चक्रवर्ती, कामदेव आदि महापुरुष के अलौकिक पदों की प्राप्ति नहीं हो सकेगी।
११) सम्यग्दृष्टि को तीर्थंकर प्रकृति का बंध होता है, यह कार्य न होने से तीर्थंकर बनना असंभव होगा ।
१२) सम्यग्दृष्टि के भोग निर्जरा के कारण होते हैं, यह उपचरित कथन करना नहीं बनेगा; क्योंकि सम्यग्दृष्टि भोग भोगने के लिए रहेगा ही नहीं, वह तो मुक्त ही हो जायेगा ।
१३) सम्यग्दृष्टि को स्त्री व नपुंसक पर्याय की प्राप्ति नहीं होती, इस आगम वचन की आवश्यकता नहीं रहेगी । यह आगम वचन व्यर्थ सिद्ध होगा ।