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मोक्षमार्ग की पूर्णता ७३. प्रश्न- हमारे दिमाग में एक विचित्र एवं विशेष ही प्रश्न उत्पन्न हुआ है। हम इस प्रश्न को उपस्थित किए बिना बहुत आकुलित हैं, अतः हम पूछ ही लेते हैं। आप हमें समझाने का कष्ट करें। __जैसे सम्यक्त्व उत्पन्न होते ही ज्ञान, चारित्र आदि सम्यक्प से तो परिणत हो जाते हैं; तथापि उनमें सिद्ध भगवान जैसी पूर्णता नहीं होती। यदि सम्यक्त्व होते ही जीव को सिद्धावस्था की ही प्राप्ति हो जाय तो क्या बाधा है ?
उत्तर - आपके प्रश्न से ऐसा लगता है कि सम्यक्त्व होते ही सिद्धावस्था प्राप्त तो हो सकती है, किन्तु हम ही उसे रोक रहे हैं।
श्रद्धा की सम्यक्त्वरूप पर्याय जिसतरह पूर्णता के साथ ही उत्पन्न होती है अर्थात् सम्यक्त्व की उत्पत्ति और उसकी पूर्णता - दोनों एक साथ ही होते हैं। उसीतरह सम्यक्चारित्र की उत्पत्ति और सिद्धावस्थायोग्य चारित्र एक साथ प्रगट होना चाहिए - ऐसा आपका विचार है। सम्यक्चारित्र की पूर्णता को आप क्रम से नहीं चाहते। ___ सम्यक्त्व की उत्पत्ति के साथ ही यदि सिद्धावस्था की प्राप्ति होती है-ऐसा मान लिया जाय तो निम्न आपत्तियाँ आयेगी, जिनका निवारण करना संभव नहीं होगा।
१) जिन-जिन जीवों को सम्यक्त्व होगा, उन सबको सिद्धावस्था तत्काल मिलेगी अर्थात् नारकी, देव, भोगभूमिज मनुष्य-तिर्यंच, स्वयंभूरमण समुद्र में स्थित सभी तिर्यंचों को सम्यक्त्व उत्पन्न होते ही तत्काल सिद्धावस्था की प्राप्ति होगी।
२) जन्म से जो स्त्री हैं, वे सम्यक्त्व प्राप्त करेंगे और स्त्री शरीर के साथ दिगंबर मुनि हुए बिना सिद्ध भी होते रहेंगे।
३) चौदह गुणस्थान के स्थान पर मात्र एक मिथ्यात्व गुणस्थान ही रहेगा। अन्य गुणस्थानों की क्रमिक परिपाटी का अभाव ही हो जाएगा।