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मोक्षमार्ग की पूर्णता हो गया है; क्योंकि तेरहवें गुणस्थान में ज्ञानावरणादि तीन घाति कर्मों का भी क्षय हो गया है। यहाँ चारित्र, क्षायिकयथाख्यात तो है ही; लेकिन इस चारित्र के साथ केवलज्ञान भी होने के कारण यहाँ के चारित्र को परमावगाढ़ चारित्र अर्थात् भावमोक्ष कहते हैं। तेरहवें गुणस्थान की अपेक्षा चौदहवें गुणस्थान में योग के अभाव की अपेक्षा चारित्र और भी अधिक विशुद्ध हो गया है; क्योंकि यहाँ योग (आत्मप्रदेशों के कम्पनरूप चंचलता) का भी अभाव हो गया है। चौदहवें गुणस्थान से सिद्धावस्था में द्रव्य मोक्ष की अपेक्षा चारित्र
और अधिक विशुद्ध/विकसित होकर पूर्ण हो गया है; क्योंकि सिद्धावस्था में चार अघाति कर्मों का भी अभाव हो गया है तथा प्रदेशत्व गुण अर्थात् व्यंजन पर्याय भी शुद्ध हो गई है; जो अबतक अशुद्ध थी। इसप्रकार सिद्धावस्था के प्रथम समय में सम्यक्चारित्र की पूर्णता हो जाती है। अब यह चारित्र की पूर्णता भविष्य में अनंतकाल तक वैसे की वैसे ही पूर्ण ही रहेगी।
५८. प्रश्न-सिद्धावस्था के प्रथम समय में मोक्षमार्ग की पूर्णता का अर्थ आपने सिद्ध भगवान को भी मोक्षमार्गी मान लिया, मुक्त नहीं माना; क्या हम ऐसा ही समझें ? ___ उत्तर - नहीं, आपका मानना सही नहीं है। हमने सिद्धावस्था में मोक्षमार्ग नहीं माना है; परन्तु मोक्षमार्ग की पूर्णता मानी है। मोक्षमार्ग की पूर्णता कहो अथवा मोक्ष कहो दोनों का एक ही अर्थ है। ____ मोक्षमार्ग तो चौदहवें गुणस्थान के अन्तिम समय तक है। साधनों की अर्थात् सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की पूर्णता ही साध्यरूप मोक्ष की प्राप्ति है। साधनों की पूर्णता ही साध्य की प्राप्ति है।