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सम्यक्चारित्र की पूर्णता उग्रता/विशेषता बढ़ गयी है, निजशुद्धात्मा में स्थिरता की वृद्धि यही मुख्य अर्थात् सही कारण है।
५५. प्रश्न - मिथ्यात्व एवं अनन्तानुबन्धी कषाय चौकड़ी के अभावपूर्वक वीतरागता किस कारण से प्रगट हुई है ?
उत्तर. - मिथ्यात्व एवं अनन्तानुबन्धी कषाय कर्म का अभाव भी तत्त्व निर्णयपूर्वक मात्र शुद्धात्मा के ध्यान से ही हुआ है, होता है; अन्य कोई साधन या उपाय इसमें कार्यकारी नहीं है। ___धर्म अर्थात् वीतरागता, शुद्धि, संवर-निर्जरा, सुख, आनंद उत्पन्न करना हो, बढ़ाना हो अथवा पूर्ण करना हो तो यह निज शुद्धात्मा का ध्यान अथवा निजशुद्धात्मा का आश्रय – यह एक ही मार्ग है, अन्य कोई उपाय नहीं है। आचार्य अमितगति योगसार-प्राभृत में लिखते हैं :
तस्मात्सेव्यः परिज्ञाय श्रद्धयात्मा मुमुक्षुभिः।
लब्ध्युपायः परो नास्ति यस्मानिर्वाणशर्मणः॥४४॥ सरलार्थ - मोक्ष की इच्छा रखनेवाले साधक को, शुद्ध आत्मा को जानकर श्रद्धा द्वारा निजात्मा की उपासना करना चाहिए; क्योंकि मोक्षसुख की प्राप्ति का दूसरा कोई उपाय/साधन नहीं है।
न मोह-प्रभृति-च्छेदः शुद्धात्मध्यानतो विना।
कुलिशेन विना येन भूधरो भिद्यते न हि ॥३०६॥ सरलार्थ - जिसप्रकार वज्र के बिना पर्वत नहीं भेदा जाता, उसीप्रकार शुद्ध आत्मा के ध्यान बिना मोहादि कर्मों का छेद अर्थात् नाश नहीं होता।
विभक्तचेतन-ध्यानमत्रोपायं विदुर्जिनाः।
गतावस्तप्रमादस्य सन्मार्ग-गमनं यथा॥३३६॥ सरलार्थ - जिसप्रकार प्रमाद अर्थात् आलस्य रहित मनुष्य का सन्मार्ग पर सतत गमन करना अपेक्षित स्थान पर्यंत पहुँचने का सच्चा