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सम्यग्ज्ञान की पूर्णता
" उत्तर-यहाँ स्वज्ञेय को जानने की प्रधानता है, क्योंकि यहाँ मोक्षमार्ग के साधने का प्रकरण है। ___ मोक्षमार्ग कहीं अवधिज्ञान से नहीं सधता, वह तो सम्यक् मतिश्रुतज्ञान द्वारा स्वज्ञेय को पकड़ने से सधता है और स्वज्ञेय को पकड़ने की ऐसी ज्ञानशक्ति तो गुणस्थान बढ़ने पर नियम से बढ़ती ही है। ___चतुर्थ गुणस्थानवाले अवधिज्ञानी की अपेक्षा, अवधिज्ञानरहित बारहवें गुणस्थानवाले जीव के ज्ञान में स्वज्ञेय को ग्रहण करने की शक्ति विशेष बढ़ गई है।
स्वज्ञेय की तरफ ढलनेवाला ज्ञान ही मोक्षमार्गरूप प्रयोजन को साधता है।
गुणस्थान प्रमाण (अपनी योग्यता से) ज्ञानशक्ति बढ़ती जाती है (या वैसी की वैसी बनी रहती है); परन्तु एक गुणस्थान में बहुत से जीव हों तो सबका ज्ञान एक-सा नहीं होता और उन सबकी क्रिया भी समान नहीं होती। एक गुणस्थानवर्ती अनेक जीवों के ज्ञानादि में तारतम्यता होती है; किन्तु उनकी जाति विरुद्ध नहीं होती। __चतुर्थ गुणस्थान में असंख्य जीव हैं, उनका उदयभाव भिन्न है, फिर भी सभी ज्ञानियों के ज्ञान की जाति तो एक ही है।
सभी ज्ञानी जीवों का ज्ञान स्वाश्रय से ही मोक्षमार्ग जानता है; पराश्रय से मोक्षमार्ग माने- ऐसा किसी ज्ञानी का ज्ञान नहीं होता।
एक गुणस्थान में सभी ज्ञानियों का औदयिक भाव तथा ज्ञान का क्षायोपशमिक भाव भिन्न-भिन्न प्रकार का होता है, तथापि उस उदयभाव के आधार से ज्ञान नहीं है, ज्ञान तो स्वज्ञेयानुसार है।
स्व-ज्ञेय का ज्ञान सभी ज्ञानियों को होने का नियम है, परन्तु अमुक उदयभाव होना चाहिये अथवा अमुक बाहर का जानपना होना