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मोक्षमार्ग की पूर्णता
किसी भी जीव के किसी भी गति में श्रद्धा गुण का सम्यक्रूप परिणमन होता है, तब वह पूर्ण ही होता है ।
सूक्ष्मदृष्टि से देखा जाय तो श्रद्धा गुण में सम्यक्पना आते ही जीवद्रव्य सर्व गुणों में सम्यक्पना आने का नियम है। इसीलिए आगम में सर्व गुणांश ते सम्यक्त्व ऐसा ज्ञानियों का प्रचलित वचन भी प्रसिद्ध है।
अतः हमें यह समझ लेना चाहिए कि श्रद्धा के सम्यकूपने की उत्पत्ति के काल में ही अनन्त गुणों में भी सम्यक्पना सहज ही आ जाता है। श्रद्धां के सम्यक्पने की उत्पत्ति और उसकी पूर्णता भी एकसाथ ही होती है।
औपशमिकादि तीनों सम्यक्त्व के संबंध में आध्यात्मिक सत्पुरुष श्रीकानजी स्वामी के अति महत्त्वपूर्ण विचार हम आगे दे रहे हैं -
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" जैसी शुद्धात्मा की प्रतीति सिद्ध भगवान के सम्यक्त्व में हैं, चौथे गुणस्थानवाले सम्यग्दृष्टि को भी वैसी ही शुद्धात्मा की प्रतीति है, उसमें कुछ भी फर्क नहीं ।
सिद्ध भगवान का सम्यक्त्व प्रत्यक्ष व चौथे गुणस्थानवाले का सम्यक्त्व परोक्ष - ऐसा भेद नहीं है; अथवा स्वानुभव के समय सम्यक्त्व प्रत्यक्ष और बाहर में शुभाशुभ उपयोग के समय सम्यक्त्व परोक्ष - ऐसा भी नहीं है।
चाहे शुभाशुभ में प्रवर्तता हो या स्वानुभव के द्वारा शुद्धोपयोग में प्रवर्तता हो, सम्यग्दृष्टि का सम्यक्त्व तो सामान्य वैसा का वैसा है; अर्थात् शुभाशुभ के समय सम्यक्त्व में कोई मलिनता आ गई और स्वानुभव के समय सम्यक्त्व में कोई निर्मलता बढ़ गई - ऐसा नहीं है । '
क्षायिकसम्यक्त्व तो सर्वथा निर्मल है; औपशमिक सम्यक्त्व भी वर्तमान में तो क्षायिक जैसा निर्मल है, परन्तु उस जीव की (निखरे हुए कादववाले पानी की तरह) मूलसत्ता में से मिथ्यात्व की प्रकृत्ति का अभी नाश नहीं हुआ।
१. अध्यात्मसंदेश, पृष्ठ-७२-७३