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सम्यक्त्व की पूर्णता
क्षायोपशमिक सम्यक्त्व में सम्यक्त्व को बाधा न पहुँचावे-ऐसा सम्यक्-मोहनीय प्रकृति संबंधी विकार है।
ये तीनों प्रकार के सम्यक्त्व में शुद्धात्मा की प्रतीति समान वर्तती है। प्रतीति की अपेक्षा से तो सम्यग्दृष्टि को सिद्धसमान कहा है।
२७. प्रश्न-चौथे गुणस्थान में जो क्षायिक सम्यग्दृष्टि है, उसकी तो प्रतीति सिद्धभगवान जैसी भले हो; परन्तु चौथे गुणस्थानवर्ती उपशम व क्षयोपशम सम्यग्दृष्टि जीव की भी प्रतीति क्या सिद्ध भगवान जैसी होती है?
उत्तर – हाँ, उपशम/(क्षयोपशम) सम्यग्दृष्टि की प्रतीति में जो शुद्धात्मा आया है, वह भी वैसा ही है जैसा कि सिद्ध भगवान की प्रतीति में आया है। शुद्धात्मा की प्रतीति तीनों ही प्रकार के सम्यक्त्वी जीवों की समान है, इसमें कोई अन्तर नहीं।"१ - श्रद्धादि तीनों गुणों के परिणमन में सम्यक्ता की पूर्णता होने पर ही आत्मा परद्रव्य से सर्वथा मुक्त होकर पूर्ण विशुद्ध होता है, अत: यह सम्यग्दर्शनादि तीनों मिलकर मोक्ष के साधन-उपाय माने गये हैं। __ इनमें से किसी एक भी साधन के अपूर्ण रहने पर परिपूर्ण मोक्ष की प्राप्ति नहीं हो सकती; क्योंकि साधनों की अपूर्णता ही विवक्षाभेद से साध्य की अपूर्णता है।
२८. प्रश्न - सम्यग्दर्शन, सम्यक्ज्ञान एवं सम्यक्चारित्र की पूर्णता का कथन गुणस्थान की मुख्यता से कीजिए, ताकि हमें समझने में अधिक सुलभता हो। ____उत्तर - सम्यग्दर्शन की पूर्णता चौथे गुणस्थान में होती है। चारित्र गुण की पूर्णता (भाव चारित्र) बारहवें गुणस्थान के प्रथम समय में होती है। सम्यग्ज्ञान की पूर्णता तेरहवेंगुणस्थान के प्रथम समय में होती है और द्रव्यचारित्र की पूर्णता सिद्धावस्था के प्रथम समय में होती है। १. अध्यात्मसंदेश, पृष्ठ-७५