________________
34
मोक्षमार्ग की पूर्णता द्रव्य को क्षण-क्षण के परिणमन के भेद से (क्षणवर्ती अवस्था से) लक्ष में लेना, सो पर्याय है। पर्याय का स्वभाव व्यतिरेकरूप है अर्थात् एक पर्याय के समय दूसरी पर्याय नहीं होती। गुण और द्रव्य सदा एकसाथ होते हैं; किन्तु पर्याय एक के बाद दूसरी होती है। - जब अरिहन्त भगवान की केवलज्ञानरूप पर्याय है, तब उसके पूर्व की अपूर्ण ज्ञानदशा नहीं होती। वस्तु के जो एक-एक समय के भिन्न-भिन्न भेद हैं, सो पर्याय है। कोई भी वस्तु पर्याय के बिना नहीं हो सकती। ___आत्मद्रव्य स्थिर रहता है और उसकी पर्याय बदलती रहती है। द्रव्य और गुण एकरूप हैं, उनमें भेद नहीं है; किन्तु पर्याय में अनेक प्रकार से परिवर्तन होता है, इसलिये पर्याय में भेद है। पहले द्रव्य-गुण पर्याय का स्वरूप अर्थात् लक्षण भिन्न-भिन्न बताकर फिर तीनों को अभेद द्रव्य में समाविष्ट कर दिया है।"
द्रव्य-गुण त्रैकालिक हैं, उसके प्रतिक्षणवर्ती जो भेद हैं सो पर्याय है। पर्याय की मर्यादा एक समय मात्र की है। इसलिये दो पर्याय कभी एकत्रित नहीं होती।
पर्यायें एक दूसरे में अप्रवृत्त हैं। एक पर्याय दूसरी पर्याय में नहीं आती; इसलिये पहली पर्याय के विकाररूप होने पर भी मैं अपने स्वभाव के आश्रय से दूसरी पर्याय को निर्विकार कर सकता हूँ। . - इसका अर्थ यह है कि विकार एक समय मात्र के लिये है और विकार रहित स्वभाव त्रिकाल है। पर्याय एक समय मात्र के लिए ही होती है, यह जान लेने पर यह प्रतीति हो जाती है कि विकार क्षणिक है।
पर्याय एक समय की मर्यादावाली है। एक पर्याय का दूसरे समय में नाश हो जाता है, इसलिये एक अवस्था में से दूसरी अवस्था नहीं १. सम्यग्दर्शन पृष्ठ-८०